Book Title: Terapanth Mat Samiksha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi

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Page 14
________________ तेरापंथ-मत समीक्षा। mmamimammmmmmmmmmmmmmmm गैरह) में लगाया। और भी देखोः-उत्तराध्ययनसूत्रमें श्रीनेमनाथ विवाहके निमित जब आए हैं, तब वहाँ पर वाडे में भरे हुए पशुओंको अनुकंपासे छुडवाये हैं । तथा ठाणांगसूत्रमें दस प्रकारके दान प्ररूपण किये हैं उनमें अनुकंपादान भी आ जाता है।" - इत्यादि बहुत २ पाठ दिखा करके समझाया, परन्तु उसने अपने अभिनिवेशको बिलकुल त्याग ही नहीं किया । ठीक ही बात है कि जीवोंकी गति कर्मोंके अधीन है। और जैसी गति होती है वैसीही मति भी होती है । तदनुसार भिखुनजीकी मति भी, उसकी गतिका परिचय कराने लगी । बस, परमात्माके शासनमें अनेकों निह्नव हुए, उन्होंमें इसका भी एक नम्बर बढ गया । परन्तु इसमें एक विशेषता थी कि और सब निह्नवतो मूलपरंपरासे निकले, परन्तु यह तो नितवों से निहव हुआ। अस्तु ! .. यह पहिलेही दिखला दिया है कि-भिखुनजीने मूल तो दोही रकमोंका फेरफार किया । दया और दान । परन्तु उन दोनों रकमोंके फेरफार करनेमें, उसको अनेकों मन्तव्य शास्त्र विरुद्ध प्रकाशित करने पडे । यहाँपर संक्षेपमें, उसके प्रकाशित मन्तव्य दिखलाये जाते हैं। दयाके विषय में. १ भूखे-प्यासेको जिमाने, कबूतर वगैरह जीवोंको दाने डालने तथा पानीकी पीयाऊ (पो) लगाने एवं दानशाला करवाने में एकान्त पाप होता है

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