Book Title: Terapanth Mat Samiksha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi

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Page 62
________________ तेरापंथ - मत समीक्षा | इसका भावार्थ यह है: - इस जिंदगीके परिवंदन मान तथा पूजा के लिये जाति-मरण और मोचनके लिये तथा दुःखके प्रतिघात के लिये जो स्वयं हिंसा करे, अन्यके पास करावे, तथा करनेवालेको अच्छा जाने, वह कार्य अहित तथा अबोधके लिये होता है । ५७ यह उसका अक्षरार्थ है । इसमें तुम्हारे प्रश्नसे उलटाही प्रतिभास होता है । तुम लिखते हो: - 'जीवरी इंस्याकियां जनम-मरणरो मुकावों परूपे तीणेन अहेत अबोधरो कारण केयो' यह बात तो स्वप्न में भी नहीं है । महानुभाव ! सूत्रोंके असल - वास्तविक अर्थ जानने चाहते हो, तो व्याकरणादिका अभ्यास करो | पश्चात् सूत्रोंके अर्थ समझनेका दावा करो । पूर्वोक्त पाठमें अपने स्वार्थ के लिये हिंसा करने वालेको, हिंसा अबोध तथा अहित के लिये कही है । परिवंदन याने कोई बांदे नहीं, तब क्रोध करके अन्यको पीडा करे। वैसेही मान तथा पूना में भी समझना । इस तरह जाति-जन्म उत्तम मिले, वैसे आशय से कुदेवोंको वंदना करे, जलदी मृत्यु न हो, ऐसी आशा से अभक्ष्य - मांसादि खानेकी प्रवृत्ति करे । तथा करने वालेकी अनुमोदना करे, उसको अहित के लिये तथा अबोध के लिये कहा है । हम लोग जो उपदेश देते हैं, वह हिंसा के लिये नहीं, परन्तु धर्मदेवकी भक्तिके लिये । प्रश्न – १६ आचारंगरे चोथा अध्येनरे पेला उदेशामे कयौ के धर्म रहे ते सर्व प्राण भूत सत्व जीवको ही मत हणो, तीनकालसतीथंकरांरा वचन हैं तो फेर देवल वगेरे कराणेमे इण ससात्र के खीलाप धर्मकेशे परूपते हो -

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