________________
तेरापंथ-मंत समीक्षा ।
इस पाठका अर्थ, हम ऊपर ही दे आए हैं।
प्रश्न-१८ आचारंगरै चोथा अध्येनरे दुजा उदेशेमे धर्महेते प्राणभूत जीवसत्वं हणीयां दोसकेयै तीके वचन आरजना छै तो फेर आप धर्मरे कारण हस्या करणे दोसे केशे नहीं परूपते हो।
उत्तर-इस प्रश्नका उत्तर सतरहवें प्रश्नके उत्तरमें ही आजाता है। वह पाठ भी सतरहवें प्रश्नमें दे दिया है । धर्मके निमित्त होती हुई करणीमें निर्जराही है। यह बात कई प्रश्नोके उत्तरमें दिखला दी है। अत एव यहाँ विशेष स्पष्टिकरण करनेकी आवश्यकता नहीं है।
प्रश्न---१९ आचारंगरे आठमे अध्ययनमें श्रीभगवंत महावीर देव ठंडो आहार गणादीनोंरो नीपजीयो डोलीयो चालीयोने आप ठंडा आहार लेणेमे मनाई परूपते हो, सो कांसी सास्त्रके अनुसार भरजीयो वे तो बतलाइये।
___ उत्तर-आचारंग सूत्रके आठवें अध्ययनमें भनवान् महावरिदेवने बहुत दिनोंका ठंडा आहार लिया, वैसा पाठ नहीं है । परन्तु प्रथम श्रुतस्कंधके नववें अध्ययनके चतुर्थ उद्देशेमें इस तरहका पाठ है:अवि सूईयं च सुकं वा सोयपिंडं पुराणकुम्मासं। अदु बक्कसं पुलाग वा लद्धे पिंडे अलद्धए दविए ॥
भावार्थ-दहींसे भीजोया हुआ भक्त (भोजन) तथा सूखे वाल चने जो कि मुंजे हुए हों, तथा वासी याने ठंडा भक्त