Book Title: Terapanth Mat Samiksha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi

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Page 25
________________ तेरापंथ - मत समीक्षा । इसमें सम्मत न होते तो दुसरीवार, सूर्याभदेवने जब आज्ञा -मांगी, उस समय प्रभु साफ 'ना' कह देते । अथवा दृष्टि फिराकर बैठ जाते । उनमेंसे कुछ भी नहीं किया तथा सूर्याभदेवने जो २ नाटक किये उसकी चर्चा जब गौतमस्वामीने भगवानसे पूछी, तत्र जो बातथी सो भगवान्ने कह दी । अगर भगवान् की निषेध बुद्धि होती तो भगवान् साथ २ यह भी कह देते कि - उसमें मेरी आज्ञा नहीं थी अथवा योंही कह देते कि- सूर्याभदेवने नाटक करके पाप कर्म वांधा है । इनमें से कुछ भी नहीं करने से नाटक तथा पूजा दोनों सूर्याभदेवको लाभदायक हैं, इसमें जरा भी शक नहीं है । " तेरापंथी श्रावक युगराज बोला कि - " भगवती सूत्र में जलते हुए घर से धन निकाल लेने, तथा वल्मीक (राकडे ) के शिखर तोडने से धन निकालने के समय 'हियाए सुहाए' इत्यादि पाठ कहा है । तो क्या धन निकालने में भी मोक्ष धर्म था ? " उपाध्यायजी श्री इन्द्रविजयजीने पूछा :- " आपने भगवतीसूत्र जो दो पाठ हैं, उनको देखे हैं? अगर देखे हों तो कहिये वे कौनसे शतक में हैं ? " तब वे बोले :- " इस समय हमें याद नहीं हैं । " ऐसा कह करके सब चले गये । दूसरे दिन दो बनेका समय निश्चय किया गया । निश्चय करनेके मुताविक दो बजेके समय कोई भी न आया, बल्कि चार बजे तक कोई नहीं आया । चार बजने के बाद तेरापंथीकी तरफसे एक आदमी आ करके कह गया कि - "आज सूत्र नहीं मिला । कल आपका लेक्चर होनेसे परसों एकमके दिन दुपहरको आवेंगे। "

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