Book Title: Terapanth Mat Samiksha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi

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Page 40
________________ तेरापंथ-मत् समीक्षा | ३५ लोगोंने किसी जगह पाया है ? यदि पाया था, तो वह पांठ स्पष्ट लिखना चाहिये था ? । सूत्रोंमें जगह २ मिध्यात्वके कारण दिखलाए हैं, लेकिन उनमें, जैनमंदिर और संघनिकालने के नाम नहीं आए हैं। यदि ये, मिथ्यात्व के कारण और जिनाल बाहर हैं, और ऐसा कोई लेख अगर आप लोगों के दृष्टिगोचर हुआ भी था, तो दिखलाना चाहिये था । और यदि नहीं हुआ है तो समझलो कि - जैनमंदिर कराने और संघ निकालने में प्रभुकी आज्ञा है । और जहां आज्ञा है, वहां धर्म है । इतना कहने से अगर आप लोगोंको संतोष न होता हो तो लीजिये और प्रमाण । नंदिसूत्र बत्तीस सूत्रोंमें है । उसी नंदिसूत्रमें महानिशीथ सूत्रका नाम आता है । उसी महानिशीथसूत्रमें लिखा है कि' जिनमंदिर करानेवाले वारहवें स्वर्गमें जाते हैं'। अब विचारनेकी बात है कि जो समकितवंत जीव हैं, वे वैमानिकका आयुष बांधते हैं। इस लिये जिनमंदिर करानेवाले खास करके सम्यग्दृष्टि हैं, ऐसा सिद्ध होता है । और समतिवंत जीवों के लिये आज्ञा और धर्म होनेसे हम लोग इस बातका उपदेश देते हैं । अब रही संघनिकालनेके विषयकी बात । इसके विषयमें समझना चाहिये कि - परमात्मा महावीर देवके समय श्रेणिककोणिक वगैरह कई राजे, रथ (जिन रथको कई जगह 'धर्म - रथ' की उपमा दी है) घोडे, हाथी, पैदल वगैरह चतुरंगी सेना के साथ बडे आडंबर से भगवान्‌को बंदणा करनेको जाते थे । इसके सिवाय ज्ञाताधर्मकथा तथा अंतगडदशांग में शत्रुंजय

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