Book Title: Terapanth Mat Samiksha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi

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Page 51
________________ ४६ तेरापंथ - मत समीक्षा । 1 निषेध नहीं किया है । ब्रह्मचर्य रूपी जब तीर्थ कहा, तब यहाँ पर उपमान- उपमेय भाव संबन्ध घटाया है । ' ब्रह्मचर्यको तीर्थतुल्य कहा, तब दूसरा कोई तीर्थ अवश्य होना चाहिये, यह बात अर्थात् सिद्ध होती है । और वह तीर्थ शत्रुंजयादि हैं ऐसा हमने सातवें प्रश्नमें दिखला दिया है । उसी तरह अंतगडदशांगसूत्र के पृष्ठ ९ मैं भी पाठ इस तरहका है: " एवं जहा अणीयसे कुमारे, एवं सेसावि प्र. णंतसेणे, अजितसेणे, अलिहिअरिउ, देवसेणे, सेतु - सेणे छ अज्झयणा, एगगमो बत्तीस उदातो, वीसं वासा परियाउ, चोइसपुव्वाई सेतुंजे सिद्धा' "" अर्थात् — जैसे अणीयस कुमारके लिये ऊपर कहा है, वैसे ही दूसरे भी अनंतसेन, अजितसेन, अजीहितरिपु, देवसेन, शत्रुसेन इन मुनियोंके लिये भी जानना, अर्थात् अणीयस वगैरह छे मुनि शत्रुंजय पर्वत पर सिद्ध हुए । ऐसे २ पाठों के आधारसे हम शत्रुंजय तीर्थ की परूपणा करते हैं । ऐसे एक-दो पाठ नहीं, सूत्रोंमें शत्रुंजय संबन्धि अनेकों पाठ मिलते हैं । जिस तीर्थपर अनन्त मुनि मुक्ति गये हैं तथा जिसके विषय में सूत्रोंमें स्पष्ट पाठ मिलते हैं, उस तीर्थके लिये भी आप लोग परूपणा न करें तो आपके शिरपर 'उत्सूत्रभाषी पनेका दोष लगेगा, इस बातको विचारो । प्रश्न – ९ प्रश्नव्याकर्णरा आश्रवदुवार पेलामे देवल प्रतीमा वास्ते प्रथ्वीका हणे जीणने मंदबुध्या कहयो तो फीर आप देवळ वगेरे कराणेमे धर्म कीस शास्त्रकी रूसे परुपते हो.

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