Book Title: Terapanth Mat Samiksha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi

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Page 59
________________ ५४ तेरापंथ-मत समीक्षा । कई साधुओंने इस तरह निकाली हैं, निकालते हैं तथा निकालेंगे । ऐसा करनेमें मुनियोंने असंख्य अपकाय हणे हैं, हणने हैं तथा हणेंगे ऐसा उपदेश तीर्थकर-गणधरोंने किया है, तो तुम्हारे हिसाबसे 'धम्मो मंगलमुकिलु' का तथा सुयगडांगसूत्रका पाठ कहाँ रहा? कदाचित् यह कहा जाय कि-साध्वीके निकालनेका लाभ, हिंसासे अधिक है, तो बस इसी तरह समझलो कि-जिन पूजादिक दर्शनशुद्धिकी करणीमें हिंसासे लाभ अधिक है । गोचरी गया हुआ साधु, महामेघकी वृष्टि होती हो-वृष्टि शान्त न होती हो तो आती हुई वर्षा में भी अपने स्थानपर आजाय । ऐसा उपदेश आचारांग, निशीथ तथा कल्पसूत्र में दिया है। उस पाठके आधारसे कई मुनि आए हैं और आवेंगे। अब उसमें अप्काय बेइन्द्रिय तेरिन्द्रिय जीवोंकी विराधना होती है तो वह पाप तुम्हारे हिसाबसे उन उपदेश देने वालोंके सिर लगना चाहिये । अच्छा और देखिये । तीर्थकर महाराजने दो अगुलियोंसे चपटी बजानेमें असंख्य जीवोंकी विराधना कही है, तो सूर्याभदेवने बत्तीस प्रकारके नाटक किये, वहीं सूर्याभदेव समेकितवंत है, इत्यादि बहुत वर्णन किया है, इसके आधारसे वर्तमानमें भी लोग, भगवानके सामने नाटक करते हैं। भगवान ने सूर्याभदेवको निषेध नहीं किया । तो तुम्हारे हिसाबसे भगवान्ने हिंसा करवाई ऐसा ठहरेगा। मुनि चातुर्मास रहे और यदि अप्रीति. अशिवादि कारण हो जाय, तो चातुर्मासमें भी विहार करे और ऐसे ही कारणसे खुद प्रभु वीरने भी चातुर्मासमें विहार किया है । इस तरहसे ऐसे कारणों में वर्तमान समयमें भी

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