Book Title: Terapanth Mat Samiksha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi

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Page 57
________________ ५२ लेसपंथ-मत समीक्षा। . ... उत्सर-उत्तराध्ययनके २८ वें अध्ययनकी ३६, वी गाथामें .कर्म खपानेकी करणीएं तप और संयम दोही कहते हो, यह ठीक नहीं है। क्योंकि-उसके ऊपरकी याने ३५ वीं गाथामें कहा है कि:" नाणेण जाण भावे दंसणेण य सदहे। चरिनेण निगिएदाइ तवेण परिसुज्झइ' ।। ३५ ॥ और आपलोग ३६ वी गाथासे कर्म खपानेकी करणीएं दो कहते हैं । यह सरासर सत्य विरुद्ध है। क्योंकि, उसी गाथासे चार करणीएं निकलती हैं । देखिये, उस गाथामें 'खवित्ता पुचकम्पाइं संजमेण तवेण य' ऐसा पद है । इसमें 'य' याने 'च' शब्द रक्खा हुआ है । 'च' शब्दसे ज्ञान-दर्शनको ग्रहण कर लेना चाहिये । अगर वैसे न किया जाय, तो 'ज्ञानदर्शन-चारित्रकी त्रिपुटीकी विद्यमानतामें मोक्ष होता है। यह बात अन्यथा हो जायगी । 'दर्शन' शब्दके आनेसे भगवान्की आज्ञाकी सद्दहणा आजाती है। और जहाँ भगवान्की आज्ञा है, वहाँ प्रतिमाको पूजना, मंदिर कराना तथा संघ निकालना वगैरह करणीएं आही जाती हैं। प्रश्न-१३ दशवीकालकरा पेला अधेनरी पेली गाथामे 'अहिंसा संजमो तवो' कयो और सुगडायंगजीरे पेले अध्येनमे चोथे उदेशे गाथ १० में ये वात केही जीन करणीमें कींचं.त्तमात्र हीश्या नहीं ताकी करणी ज्ञानरो सारकेयो और आप देवेल प्रतिमाकी ध्रव पूजा करणेमे वो संग कडानेमें जीव हंश्या करणेमे दोस नही परुपते हो सो प्रतक्षे हंस्या होती हैं ओर

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