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तेरापंथ -मत समीक्षा।
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भी लेश्याएं होवें तो वे आदिकी तीन ही समझनी, परन्तु भावतो ऊपरकी तीनही समझनी । सातवें गुणस्थानकमें तेजो, पद्म तथा शुक्लही होती है। कारण यह है कि-आते-रौद्रध्यान नहीं होनेसे अति विशुद्धता होती है । आठवें गुणस्थानकसे बारहवें गुणस्थानक पर्यन्त छदमस्थ मुनिको एकही शुक्ल लेश्या होती है।
प्रश्न-७ ज्ञातासूत्रमैं पांचमा अध्येमें ज्ञानदर्श चात्ररूपी जात्रा कही और आप श्रेतुर्जा वगेरकी जतरा परूपते हो सो कीस सत्राकीरूसे। .
उत्तर--ज्ञातासूत्रके पांचवें अध्ययनमें पृष्ठ ५७९ में ज्ञानदर्शन-चारित्र-तप संयमादि रूपी यात्रा कही है। सो ठीक है । उस बातको हम लोग भी मान्य करते हैं । परन्तु इससे शत्रुजय वगैरहकी यात्राका निषेध नहीं होता है। देखिये, उसी अध्ययनके ५९२ वे पृष्ठमें थावच्चा अणगार, एक हजार साधुके साथ पुंडरीक पर्वत पर गये हैं। धीरे धीरे उस पर्वत पर चढे । इत्यादि पाठ है । वह पाठ यह हैः-- .. "तएणं से थावच्चापुत्ते अणगारसहस्सेणं सद्धिं संपुरिबुडे जेणेव पुंडरीए पव्वये तेणेव उवागच्छर, उवागच्छश्त्ता पुंडरीअं पव्वयं सणि सणि
दुरहंति"
। अर्थात्-तब हजार अनगारोंसे परिवृत हुए थावच्चापुत्र, जहाँ पुंडरीक पर्वत है, वहाँ आते हैं । आ करके उस पुंडरीक पर्वत पर धीरे धीरे चढते हैं।