Book Title: Terapanth Mat Samiksha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi

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Page 47
________________ तेरापंथ-मत समीक्षा। केवलज्ञानी न संज्ञी हैं, न असंज्ञी हैं। क्योंकि-मनइन्द्रियजन्य चेष्टाको संज्ञा कहते हैं। संज्ञा जिसको होती है, वह संज्ञी कहा जाता है । केवली भगवान्को द्रव्यमन है, परन्तु मनइन्द्रियसे कार्य लेते नहीं हैं। अर्थात् उससे भूत-भविष्य-वर्तमानका विचार करते नहीं है । अपने केवलज्ञानसे ही साक्षात् करते हैं । पनवणाजीके ३१ वें पदमें केवलीसंज्ञी नहीं तथा असंही नहीं, ऐसा दिखलाया है। प्रश्न ६-पंचमाहाव्रतधारी छंदमसत मुनीमैं जीवरो भेद गुणठाणों डंडक कीसो कीसो पावै इणारी गत जात इद्र काया कीसी ओर प्रजा प्रांण, शरीर जोग उप्पीयोग आतमा लेश्या कीतनी २ कोंन २ सी पावैः । उत्तर-छदमस्थ मुनिको, जीवके भेदोंमेंसे गर्भजपंचेन्द्रिय मनुष्यके भेदमें गिना है। गुणस्थानक छठेसे बारहवें तक होतें हैं । दंडक मनुष्यदंडक । गति देवलोककी होती है, क्योंकिपंचमहाव्रत धारी छद्मस्थ मुनिको सम्यक्त्व अवश्य होता है। और सम्यक्त्ववाला जीव वैमानिकके सिवाय दूसरा आयुष्य नहीं बांधता है। कदाचित् पहिले किसी गतिका आयुष्य बाँधा हो, और पीछेसे मुनिपणा अंगीकार किया हो, तो छद्मस्थ मुनि, पहिले आयुष्य बांधा हो, उस गतिमें जाता है, यदि पहिले आयुष्य न बांधा हो तो अवश्य देवलोकमें जाता है। जाति पंचेन्द्रियकी । इन्द्रियोंमें पंचेन्द्रिय । काय त्रसकाय। पर्याय मनुष्यत्व । प्राण दस होते हैं, शरीर मुख्य औदारिक होता है, पीछेसे लब्धिसे वैक्रिय तथा आहारक कर सकते हैं। भव आश्रयी वैक्रियशरीर वालेको मुनिपणा नहीं होता है।

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