Book Title: Terapanth Mat Samiksha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi

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Page 38
________________ सेरापंथ-मात समीक्षा। अजे अन्नत्थ गामे परिवसंति अट्टा दित्ता वित्थिपण. विपुलवाहणा जाव लद्धता गदिअहा चाउदसमुदिपुणिमासिणीसु पडिपुण्णं पोसह पालेमाणा निग्गंथाणं निग्गंधीणं फासुएसणिज्जेणं असणं पाणं खाइमं साश्म पडिलानेमाणा चेइआलएसु तिसंझासमए चंदणपुप्फधूववत्याहिं अचणं कुणमाणा जाव जिणहरे विहरति । से तेल्हेणं गोयमा ! जो जिणपमिडम पूएइ सो नरो सम्मदिट्टी जाणिअव्वो जो जिणपडिमन पूएइ सो नरो मिच्छदिही जाणिअव्वो मिच्छदिहिस्स नाणं न दवइ चरणं न इव मुक्खं न हवइ सम्मदिहिस्स नाणं चरणं मुक्खं च हवइ । से तेणडेणं गोयमा!सम्मदिहिस्स सड्डे जिणपडिमाणं सुगंधपुप्फचंदणविलेवणेहिं पूआ कायव्वा" __ अर्थात्-उस कालमें, उस समयमें तुंगिया नगरीमें बहुत श्रमणोपासक-श्रावक रहते थे। शंख, शतक, शिलप्रवाल, ऋषिदत्त, दमक, पुष्कली, निबिद्ध, सुप्रतिष्ठ, भानुदत्त, सोमिल, नरवर्मा, आनंद, कामदेवादि आर्य, अन्यत्र-दूसरे गाममें रहते हैं । जो आढ्य, दीप्त, विस्तीर्ण, विपुलवाहनवाले ( यावत् ) लब्धार्थ, गृहीतार्थ, चतुर्दशी, अष्टमी, अमावास्या तथा पूर्णिमा इन तिथियोंमे प्रतिपूर्ण पौषधको पालते, साधु -तथा साध्वि-योंको प्रासुक 'एषणीय अशन-पान-खादिम-स्वादिम आहारको प्रतिलाभते और चैत्यालयोंमें तीनों संध्याओंमें चंदन-.

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