Book Title: Terapanth Mat Samiksha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi

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Page 37
________________ तेरापंथ-मत समीक्षा । ' हम सूर्याभदेवके आभियोगिक (नोकर), आप देवानुप्रियको बंदणा करते हैं। नमस्कार करते हैं। सत्कार करते हैं। सन्मान करते हैं। कल्याण मंगलके निमित्त देव प्रतिमाकी तरह पर्युपासना करते हैं। (देवोंके ऐसे कहनेके बाद) 'हे देवो ! ऐसा आमंत्रण करके श्रमणभगवान् महावीर उन देवोंके प्रति इस तरह बोले:-'हे देवो ! यह प्राचीन है, यह आचार है, यह कृत्य है, यह करणीय है, यह पूर्व देवोंने आचरण किया हुआ है । इस तरह समस्त तीर्थकरोने आज्ञा की है, और मेरी भी आज्ञा है। ___ उपर्युक्त लिखे हुए पाठमें, भगवान्ने, देव प्रतिमाकी तरह पूजा करनेमें 'तुम्हारा कृत्य' 'तुम्हारा आचार' वगैरह कह करके आज्ञा तथा धर्म दिखलाया, तो 'प्रतिमा पूजा' में आज्ञा और धर्म स्वतः सिद्ध हुआ। क्योंकि 'प्रतिमाकी तरह ऐसा कह करके प्रतिमाका तो खास दृष्टान्त ही दिया है । इसके सिवाय देखिये । महाकल्पसूत्र, जिसका नाम नंदीसूत्रके ४०९ वे पृष्ठमें “उकालिअ अणेगाविहं पन्नत्तं तंजदा-दसवेकालिअं कप्पियाकाप्पियं चुल्लुकप्पसुयं महाकप्पसुयं उववाश्यं रायपसेणियं........” इत्यादि पाठमें है, उसमें इस तरहका पाठ है तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव तुंगिआए नयरीए बहवे समगोवासमा परिवसंति संखे सयए सि. लप्पवाले रिसिदत्ते दमगे पुख्खली निबरे सुप्पश्छे, नाणुदत्ते सोमिले नरवस्मे आणंदे कामदेवाश्णो

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