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तेरापंथ-मत समीक्षा
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बडी भारी भूल है। कई पाठ ऐसे होते हैं, जिनके अर्थोंके लिये परंपरासे प्राप्त अर्थोपर अवश्य दृष्टि दौडानी ही पडती है । सूत्रोंके थोडे अक्षरों में बहुत अर्थ निकलते है । अनुयोग द्वारके १२३ पृष्ठमें ' डोडिणी-गणिया-अमच्चाईणं' ऐसा पाठ है। इन नव अक्षरोंमेंसे, कोई भी पंडित यथार्थ भावार्थ नहीं बतला सकता। डोडिणी कौनथी ? गणिका कौनथी ? मंत्री कौनथा ? क्या उनका संबन्ध था ? किस तरह हुआ था। ये बातें, मूल सूत्रके ९ अक्षरोंसे कभी नहीं निकल सकतीं । ऐसे २ अनेकों पाठ हैं, जिनके अर्थों के लिये पूर्वाचायोंकी बनाई हुई टीकाओं और निक्तियों पर ध्यान देना ही पड़ेगा।
इन बातोंसे सिद्ध होता है कि-जिन्होंने बत्तीस सूत्र (मूल) के ऊपरही अपना आधार रख छोडा है, वे यथार्थमें भूले हुए हैं । यदि वे बत्तीस सूत्रों के अनुसारभी चलना रवी. कार करते हों तो उनको सूत्रकी आज्ञानुसार, और सूत्र तथा टीका-नियुक्ति वगैरह अवश्य मानने चाहिये
आश्चर्यकी बात है कि-बत्तीस सूत्र मानने वाले महा. नुभाव एकही कर्ताके एक वचनको मानते हैं, और दूसरे वचन को उत्थापते हैं । जैसे श्रीभद्रबाहुस्वामिकृत दशाश्रुतस्कंधको मानते हैं, और उन्हीं भद्रबाहुस्वामिकृत दश नियुक्तियोंको नहीं मानते हैं। कैसा अन्याय ? ।
___ अब इस परामर्शको यहाँही समाप्त करके उन महानुभावोंके पूछे हुए तेईस प्रश्नोंके जवाब देना आरंभ करते हैं । उनके प्रश्न जैसेके तैसे यहाँपर उद्धत -किये जायेंगे, जिससे पाठक देख लें कि-जिनको भाषा लिखनेकी भी तमीज नहीं है, जिनको