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तेरापंथ-मत समीक्षा।
धन निकालनेके लिये कहा है । धनमें कुछ धर्म नहीं है, तथापि कहा है, इसका क्या कारण ?" __ आचार्य महाराजने कहा:-" उस पाठका मतलब आपको याद है !" उन्होंने कहा:- हां याद है। भगवतीमूत्रके दूसरे शतकके प्रथम उद्देशेमें तथा पन्दरहवे शतकके प्रथम उद्देशेमें यह अधिकार हैं। । आचार्य महाराजने कहा:-" वहाँ पर कैसे अधिकार चले हैं ! उनका मतलब क्या है !"
इसके उत्तरमें शिरेमलजी कहने लो, तब उसके पक्षका दूसरा आदमी निषेध करने लगा। दोनोंको आपसमें 'हा' 'ना' की लडाई हुई, और योंही दस मिनिट चली गई। इसके बाद पंडितजीने कहा किः-महाराजजी आपही फरमाईये । आचार्य महाराजने उस पाठको निकाल करके पंडितजीके सामने रख दिया। " गोशालेने, आनंदसाधुके पास कही हुई, चार वणिक्की कथा कही । वल्मीक (राफडे ) के तीन शिखर तोडे, जिसमेंसे जल-सुवर्ण वगैरह माल निकला। चौथे शिखरके तोडनेके लिये जब खडा हुआ, तब वृद्ध वणिक् शिक्षा देता है । वे सब वणिरके विशेषण हैं, धनके विशेषण नहीं हैं।" - इस बातको सुनकरके तथा पाठको देख करके पंडितजी आश्चर्यमग्न हो गये और उन लोगोंकी अज्ञानता पर तिरस्कार जाहिर करने लगे। - जब ढूंढक तथा तेरापंथी, यह समझ गये कि- 'पाठ उलटा है-अपने कहे मुताबिक नहीं है। तब कहने लगे कि