________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 29 सामर्थ्याद्दर्शनेनात्राभिंसंबंधसिद्धेरिति चेत् न, शाब्दन्यायान्मार्गेणाभिसंबंधप्रसक्तेः। प्रत्यासत्तेस्ततोपि दर्शनस्यैवाभिसंबंध इति चेन्न, मार्गस्य प्रधानत्वाद्दर्शनस्यास्य तदवयवत्वेन गुणभूतत्वात्, प्रत्यासत्तेः प्रधानस्य बलीयस्त्वात्, सन्निकृष्टविप्रकृष्टयोः सन्निकृष्टे संप्रत्यय इत्येतस्य गौणमुख्ययोर्मुख्ये संप्रत्यय इत्यनेनापोहितत्वात् सार्थक एव तच्छब्दो मार्गाभिसंबंधपरिहारार्थत्वात् / ननु च दर्शनवन्मार्गस्यापि पूर्वप्रक्रांतत्वप्रतीते: तच्छब्दस्य च पूर्वप्रक्रांतपरामर्शित्वात् कथं शाब्दन्यायादर्शनस्यैवाभिसंबंधो न तु मार्गस्येति चेत् न, अस्मात्सूत्रादर्शनस्य मुख्यतः पूर्वप्रक्रांतत्वात्परामर्शोपपत्ते: मार्गस्य पूर्वप्रक्रांतत्वादुपचारेण तथा भावात् परामर्शाघटनात्। तदिति नपुंसकलिंगस्यैकस्य निर्देशाच्च न मार्गस्य पुल्लिंगस्य परामर्शो नापि बहूनां सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणामिति शाब्दान्न्यायादार्थादिव सद्दर्शनं तच्छब्देन परामृष्टमुन्नीयते / शंका : इस सूत्र में 'तत्' शब्द का ग्रहण व्यर्थ है, क्योंकि दो हेतुओं के सामर्थ्य से वा सम्यग्दर्शन का प्रकरण होने से तत्' शब्द के बिना ही सम्यग्दर्शन का अभिसम्बन्ध सिद्ध हो जाता है। समाधान: ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि 'तत्' शब्द के प्रयोग बिना शब्द सम्बन्धी व्याकरण शास्त्र के अनुसार निसर्गादि का मोक्षमार्ग के साथ अभिसम्बन्ध का प्रसंग आता है। अत्यन्त निकट होने से अधिगम और निसर्ग का सम्बन्ध सम्यग्दर्शन के साथ ही होता है, ऐसा कहना भी उचित नहीं है। क्योंकि यहाँ मोक्षमार्ग की प्रधानता है, मोक्षमार्ग का अवयव (अंश) होने से सम्यग्दर्शन की गौणता है। "प्रत्यासत्ति (निकट रहने वाले) से प्रधान बलवान होता है। सन्निकृष्ट और विप्रकृष्ट में सन्निकृष्ट का सम्प्रत्यय (ज्ञान) होता है, दूरवर्ती का नहीं। व्याकरण की इस परिभाषा से गौण और मुख्य पदार्थ का समान प्रकरण होने पर मुख्य का ज्ञान होता है" इस प्रकार इस परिभाषा से अपवादित (बाधित) होने से मार्ग के अभिसम्बन्ध का परिहार करने के लिए 'तत्' शब्द का ग्रहण सार्थक है। शंका : सम्यग्दर्शन के समान मोक्षमार्ग के भी पूर्व प्रकान्तत्व की प्रतीति होने से (पूर्व प्रकरण में आगत का ज्ञान होने से) और 'तत्' शब्द के पूर्व प्रकान्त परामर्शित्व होने से, शब्द न्याय से सम्यग्दर्शन का ही तत्' शब्द से ग्रहण क्यों होता है, मोक्षमार्ग के साथ क्यों नहीं होता ? समाधान : इस प्रकार कहना उचित नहीं है, क्योंकि इस सूत्र से मुख्य रूप से पूर्वप्रकान्तपना सम्यग्दर्शन के ही है, अतः सम्यग्दर्शन का ही तत्' शब्द से ग्रहण होता है। मार्ग के पूर्व प्रकान्तत्व उपचार से है, अत: मार्ग के मुख्य रूप से पूर्व प्रकान्तत्व का अभाव होने से ‘तत्' शब्द के द्वारा मार्ग का ग्रहण होना घटित नहीं होता। अथवा 'तत्' यह नपुंसकलिंग है और मार्ग पुल्लिंग। अत: लिंग के अर्थानुसार 'तत्' शब्द से नपुंसकलिंग सम्यग्दर्शन का ग्रहण होता है। तत्' यह एकवचन का निर्देश होने से बहुवचनवाची सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का ग्रहण नहीं होता अत: शब्द पर विशेष लक्ष्य देने वाले शब्दशास्त्र और अर्थांश पर लक्ष्य देकर शब्दबोध की प्रणाली को बताने वाले अर्थशास्त्र की नीति से 'तत्' शब्द के द्वारा सम्यग्दर्शन का ही ग्रहण होता है, मार्ग का नहीं।