Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 02
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 378
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 365 सर्वं सर्वात्मकं सिद्ध्येदेवमित्यतिसाकुलम् / सर्वकार्योद्भवे सत्त्वस्यार्थस्येदृक्षशक्तितः // 25 // भवदपि हि सर्वं सर्वकार्योद्भवे शक्तं सर्वकार्योद्भावनशक्त्यात्मकं सिध्येद्यथा सर्वसंख्याप्रत्ययविषय भूतं सर्वसंख्यात्मकमिति शक्त्यात्मना सर्वं सर्वात्मकत्वमिष्टमेव // व्यक्त्यात्मनानुभावस्य सर्वात्मत्वं न युज्यते। सांकर्यप्रत्ययापत्तेरव्यवस्थानुषंगतः // 26 // न हि सर्वथा शक्तिव्यक्त्योरभेदो येन व्यक्त्यात्मनापि सर्वस्य सर्वात्मकत्वे सांकर्येण प्रत्ययस्यापत्तेर्भावस्याव्यवस्थानुषज्यते कथंचिद्भेदात् / पर्यायार्थतो हि शक्तेर्व्यक्तिर्भिन्ना तदप्रत्यक्षत्वेपि प्रत्यक्षादभेदेन तदघटनात् / ननु च यथा प्रत्ययनियमाद्व्यक्तयः परस्परं न संकीर्यते तथा शक्तयोपि तत एवेति अथवा, सम्पूर्ण कार्यों के उत्पन्न कराने में द्रव्य दृष्टि से सत्त्व अर्थ के इस प्रकार की शक्ति मानी गई है अर्थात् सत्ता संग्रह नय की अपेक्षा सत्त्व सामान्य से सर्व जड़ चेतन पदार्थ एक हैं॥२५॥ सर्व पदार्थ सर्व कार्यों को उत्पन्न करने में समर्थ हैं अत: सर्व कार्य उद्भावन शक्ति से तदात्मक सिद्ध हैं जैसे कि सर्व संख्या ज्ञानों के विषयभूत पदार्थ सम्पूर्ण संख्याओं के साथ तदात्मक हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण पदार्थ शक्ति रूप से सर्व के साथ तदात्मक इष्ट ही हैं अर्थात् सामान्य सत्ताग्राही नय की अपेक्षा सर्व तदात्मक हैं, इसमें कोई विरोध नहीं है। शक्ति (द्रव्य) दृष्टि से सर्व पदार्थ एक होते हुए भी व्यक्तिस्वरूप (पर्याय दृष्टि) से पदार्थों का सर्वात्मकपना (एकत्व) मानना युक्त (सुसंगत) नहीं है क्योंकि व्यक्तिरूप से सर्व पदार्थों का परस्पर एकत्व मान लेने पर सांकर्य के ज्ञान होने की आपत्ति होने के कारण पदार्थों की अव्यवस्था होने का प्रसंग आयेगा अर्थात् गोरस की अपेक्षा दूध और दही में एकत्व होते हुए भी पर्याय रूप दूध और दही में एकत्व नहीं है। क्योंकि स्वकीय पर्याय की अपेक्षा दोनों एक हो जाने पर दूध और दही की व्यवस्था का अभाव हो जायेगा॥२६॥ . सर्वथा व्यक्ति और शक्ति में अभेद नहीं है। जिससे शक्ति के समान व्यक्ति आत्मकत्व के साथ भी सर्व पदार्थों का सर्वात्मकत्व हो जाने से सांकर्यज्ञान (सर्व पदार्थों के एक ज्ञान) होने की आपत्ति (प्रतिपत्ति) होती है अर्थात् सभी पदार्थों का एकत्व रूप से ज्ञान होने का और सर्व पदार्थों की नियत व्यवस्था के अभाव का प्रसंग आता है, अतः शक्ति और व्यक्ति में परस्पर कथंचित् भेद है और कथंचित् अभेद है। पर्यायार्थिक नंय की अपेक्षा शक्ति (द्रव्य) से व्यक्ति (पर्याय) भिन्न है क्योंकि उन शक्तियों के अप्रत्यक्ष होने पर भी व्यक्तियों के द्वारा प्रत्यक्ष होना प्रतीत होता है। सर्वथा अभेद या भेद घटित नहीं होता है। सर्वथा व्यक्ति के भेद होने पर शक्ति का ज्ञान नहीं हो सकता। शंका : जैसे प्रतिनियत ज्ञान के नियम से व्यक्तियाँ परस्पर एकमेक नहीं होती हैं उसी प्रकार शक्तियाँ भी उसी ज्ञान के नियम से संकीर्ण (एकत्व) नहीं होंगी। अतः शक्ति रूप से सर्व पदार्थ सर्वात्मक

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