Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 02
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 377
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 364, स्वरूपभेद: पुनरनंतात्मकत्वात्तस्य तत्त्वतो व्यवतिष्ठते कल्पनारोपितस्य तस्य निराकरणात् भवंश्चैकत्वादीनामेकत्र सर्वथाप्यसतां विरोध: स्यात्सतां वा। किं चातः॥ सर्वथैवासतां नास्ति विरोधः कूर्मरोमवत् / सतामपि यथा दृष्टस्वेष्टतत्त्वविशेषवत् // 24 // न सर्वथाप्यसतां विरोधो नापि यथा दृष्टसतां / किं तर्हि, सहैकत्रादृष्टानामिति चेत् कथमिदानीमेकत्वादीनामेकत्र सकृदुपलभ्यमानानां विरोध: सिद्ध्येत् ? मूर्तत्वादीनामेव तत्त्वतो भेदनयात्तत्सिद्धेः। ननु च यथैकस्यार्थस्य सर्वसंख्यात्मकत्वं तथा सर्वार्थात्मकत्वमस्तु तत्कारणत्वादन्यथा तदयोगात्।। की अपेक्षा करने पर अर्थ की द्वित्व, त्रित्व आदि संख्यायें हैं अतः विरुद्धता को दूर भगा दिया है। यद्यपि एकत्व, अनेकत्व, नित्य, अनित्यत्व आदि में अपने स्वरूप की अपेक्षा भेद है तथापि अनन्त धर्मात्मक धर्मी वस्तु के साथ तादात्म्य सम्बन्ध की अपेक्षा भेद नहीं है। अत: एकत्व के साथ द्वित्व आदि संख्या विरुद्ध तथा कल्पना आरोपित नहीं है अर्थात् वास्तविक रूप से एक धर्मी में परस्पर विरोधी धर्म रहने में कोई विरोध नहीं है। एकत्व आदि धर्मों का एक पदार्थ में रहने का विरोध सत् पदार्थों का विरोध है? या असत् पदार्थों का विरोध है ? ऐसी शंका होने पर आचार्य कहते हैं: कछुए के रोम के समान सर्वथा असत् पदार्थों का विरोध नहीं हो सकता। तथा जैसे दृष्टिगोचर हो रहे हैं उन सत्पदार्थों का भी परस्पर विरोध नहीं है क्योंकि अपने-अपने अभीष्ट तत्त्वों के विशेषों का विरोध किसी ने भी नहीं माना है॥२४॥ ___सभी प्रकारों से असत् पदार्थों का विरोध नहीं है और जिस प्रकार वे दृष्टिगोचर हो रहे हैं उन सत् पदार्थों का विरोध भी नहीं है। प्रश्न : तो फिर विरोध किसका है ? उत्तर : एक अर्थ (पदार्थ) में एक साथ दृष्टिगोचर नहीं होने वाले धर्मों का विरोध है तो एक धर्मी मे एक साथ दृष्टिगोचर होने वाली एकत्व, द्वित्व आदि संख्याओं का विरोध कैसे सिद्ध हो सकता है ? अत: मूर्तत्व, अमूर्तत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व आदि का वास्तव में भेदनय की अपेक्षा विरोध सिद्ध होता है वह एक स्थलपर नहीं दीख रहा है। शंका : जैसे एक अर्थ का सम्पूर्ण संख्याओं के साथ तादात्म्य सम्बन्ध सिद्ध है, उसी प्रकार एक अर्थ का सम्पूर्ण अर्थों के साथ तादात्म्य सम्बन्ध सिद्ध होना चाहिए क्योंकि उन पौद्गलिक कार्यों के कारण सभी पुद्गल हो सकते हैं। अन्यथा (उनके साथ तादात्म्य सम्बन्ध नहीं माना जाता है तो) उसके कारणत्व का अयोग होता है अर्थात् तादात्म्य सम्बन्ध के बिना परस्पर नियत कार्य कारण भाव के अभाव का प्रसंग आता है। ___समाधान : इस प्रकार शंकाकार के कथनानुसार सभी पृथक्-पृथक् पदार्थ दूसरे पदार्थों के साथ तदात्मक सिद्ध हो जाते हैं। इस प्रकार तो अतीव आकुलता बढ़ जायेगी अर्थात् सर्व पदार्थ एकमेक हो जायेंगे। किसी भी वादी को ऐसी पदार्थों की संकरता इष्ट नहीं है।

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