Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 02
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 375
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 362 न हि प्रमेयस्य सत्तैव प्रमातुर्निश्चये हेतुः सर्वस्य सर्वदा सर्वनिश्चयप्रसंगात् / नापींद्रियादिसामग्रीमात्रं व्यभिचारात् / स्वावरणविगमाभावे तत्सद्भावेपि प्रतिक्षणविनाशादिषु बहिरंतश्च निश्चयानुत्पत्तेः, स्वावरणविगमविशेषवैचित्र्यादेव निश्चयवैचित्र्यासिद्धेरन्यथानुपपत्तेः / तथा सति नियतमेकत्वाद्यशेष संख्या सर्वेष्वर्थेषु विद्यमानापि निश्चयकारणस्य क्षयोपशमलक्षणस्याभावे निश्चयं जनयति तद्भाव एव कस्यचित्तदनिश्चयात्॥ यत्रैकत्वं कथं तत्र द्वित्वादेरपि संभवः / परस्परविरोधाच्चेत्तयो.वं प्रतीतितः // 20 // प्रतीते हि वस्तुन्येकत्वसंख्या द्वितीयाद्यपेक्षायां द्वित्वादिसंख्या वा नैकस्थत्वात्तस्यास्ततो न विरोधः॥ निश्चय का प्रसंग आता। इन्द्रिय, प्रकाश आदि सामग्री मात्र भी पदार्थों के निर्णय की कारण नहीं है क्योंकि इन्द्रिय, प्रकाश आदि सामग्री के होने पर भी सूक्ष्म पदार्थों का ज्ञान नहीं होता अतः इन्द्रिय, आलोक आदि को प्रमेय के निश्चय का कारण मानना अनैकान्तिक दोष से युक्त है। स्वकीय ज्ञान के आवरण के अभाव में इन्द्रियों के विद्यमान होने पर भी प्रतिक्षण विनाश आदिमें बहिरंग और अंतरंग पदार्थों का निश्चय नहीं होता है तथा ज्ञानावरण के क्षयोपशम या क्षय होने पर इन्द्रियों के अभाव में पदार्थों का निश्चय हो जाता है। भावार्थ : जैसे अवधिज्ञान, मनःपर्यय ज्ञान और केवलज्ञान इन्द्रियों के अभाव में भी पदार्थों का निश्चय कर लेते हैं अत: इन्द्रियाँ और प्रकाश भी पदार्थों के निश्चय कराने में कारण नहीं हैं। स्वकीय आवरण क्षयोपशम और क्षय की विचित्रता से ही पदार्थों के निश्चय के विचित्रता की सिद्धि होती है; अन्यथा (यदि क्षयोपशम की विशेषता न हो तो) मन्द, मन्दतर आदि ज्ञान की सिद्धि नहीं होती है। सो क्षयोपशम के अनुसार ज्ञान होने की व्यवस्था हो जाने पर पदार्थों में नियत एकत्व आदि संख्यायें सारे पदार्थों में विद्यमान हैं फिर भी निश्चयज्ञान के कारणभूत क्षयोपशम लक्षण के अभाव में निश्चय को उत्पन्न नहीं कराती हैं और क्षयोपशम के होने पर किसी व्यक्ति को संख्या का निश्चय हो जाता है। शंका : जिस पदार्थ में एकत्व संख्या विद्यमान है, उसमें दो तीन आदि संख्या का रहना कैसे संभव है ? क्योंकि एकत्व और दो तीन आदि में परस्पर विरोध है। उत्तर : ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि संख्या की प्रमाणों से प्रतीति हो रही है और प्रतीति से प्रसिद्ध का विरोध नहीं होता है।॥२०॥ प्रमाण से प्रतीत (निर्णीत) वस्तु में एकत्व संख्या है, और दूसरे, तीसरे आदि पदार्थों की अपेक्षा द्वित्व आदि संख्या भी है। वे द्वित्व आदि संख्यायें अनेकस्थ होने से एक पदार्थ में अनेक संख्या के रहने का विरोध नहीं है। जैसे वैशेषिक मत में एक समवाय अनेक पदार्थों में रहता है।

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