Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 02
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

View full book text
Previous | Next

Page 323
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 310 रसरूपयोरेकगुणिव्याप्तयोरनुमानानुमेयव्यवहारयोरेकद्रव्यप्रत्यासत्तिरनेनोक्ता तदभावे तयोस्तद्व्यवहारयोग्यतानुपपत्तेः / एकसामण्यधीनत्वात्तदुपपत्तिरिति चेत् कथमेकासामग्री नाम ? एकं कारणमिति चेत् , तत्सहकार्युपादानं वा ? सहकारि चेत् कुलालकलशयोर्दण्डादिरेका सामग्री स्यात् समानक्षणयोस्तयोरुत्पत्तौ तस्य सहकारित्वात् / तथा एतयोरनुमानानुमेयव्यवहारयोग्यता अव्यभिचारिणी स्यात् तदेकसामायधीनत्वात्। एकसमुदायवर्तिसहकारिकारणमेका सामग्री न भिन्नसमुदायवर्ति यतोयमतिप्रसंग इति चेत् , कः पुनरयमेक: समुदाय: ? साधारणार्थक्रियानियताः प्रविभागरहिता रूपादय इति चेत् कथं प्रविभागरहितत्वमेकत्वपरिणामाभावे तेषामपपद्यतेतिप्रसंगात / सांवत्यैकत्वपरिणामेनेति चेन्न. तस्य प्रविभागाभावहेतत्वायोगात / प्रविभागाभावोपि समय (एक समय) में रहने वाले एक गुणी द्रव्य में व्याप्त रूप से रस का और इससे रूप का अनुमान करके अनुमान और अनुमेय के व्यवहार को प्राप्त हुए रूप और रस गुण की भी परस्पर में एक द्रव्य प्रत्यासत्ति है। इसकी भी उक्त कथन से सिद्धि हो जाती है। यदि रूप और रस में एक द्रव्यप्रत्यासत्ति नहीं मानी जाती है तो उनमें अनुमान और अनुमेय के व्यवहार की योग्यता नहीं हो सकती। ___एक सामग्री के आधीन होने के कारण रस से रूप का और रूप से रस का अनुमान हो जाता है ऐसा सौगत के कहने पर जैनाचार्य कहते हैं कि वह एक सामग्री क्या वस्तु है? यदि कहो कि एक सामग्री आधीनता का अर्थ है-कारण। तो वह कारण कौनसा है, निमित्त कारण है? कि उपादान कारण है ? यदि . निमित्त (सहकारी) कारण मानते हो तो कुलाल (कुंभकार) और घट की दण्ड, चक्रादि सहकारी कारण भी एक सामग्री हो जावेगी क्योंकि समान समय में परिणमन करते हुए उन कुलाल और घट की उत्पत्ति में वे दण्डादि पदार्थ सहकारी कारण होते हैं तथा एक सामग्री के आधीन होने के कारण उन कुंभकार और घट की अनुमान अनुमेय के व्यवहार की योग्यता भी व्यभिचार दोष रहित हो सकती है क्योंकि वे दोनों ही एक सामग्री के आधीन हैं अर्थात् सहकारी कारण एक होने से कुंभकार से घट का और घट से कुंभकार का अनुमान हो जाना चाहिए, परन्तु ऐसा होता नहीं है। ___ यहाँ यदि बौद्ध कहें कि एक समुदाय में रहने वाले सहकारी कारण एक सामग्री हैं, भिन्न समुदाय में रहने वाले सहकारी कारण एक सामग्री नहीं हैं जिससे कि यह अतिप्रसंग होता है अर्थात् घटनिर्माण के कारण समुदाय, कुंभकार के कारण समुदाय से भिन्न हैं, अतः भिन्न समुदाय में रहने के कारण दण्ड आदि एक सामग्री नहीं हैं। जैनाचार्य कहते हैं कि यह एक समुदाय पदार्थ क्या है ? . साधारण अर्थक्रिया में नियत और प्रकट विभाग से रहित रूप, रस आदि को यदि समुदाय कहते हो तो उन रूपादिकों का परस्पर एकत्व परिणाम के अभाव में विभागरहितत्व कैसे सिद्ध हो सकता है। यदि परस्पर एकत्व के अभाव में भी विभाग रहितत्व सिद्ध होता है तो अतिप्रसंग दोष आता है अर्थात् आकाश और आत्मा आदि के भी विभाग रहितत्व होकर समुदाय बन जायेगा। संवृत्ति (असत्य कल्पना) से एकत्व परिणाम के द्वारा रूप आदिकों का अविभागीपना मानना उचित नहीं है क्योंकि उस कल्पित (सांवृत्त) एकत्व

Loading...

Page Navigation
1 ... 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406