Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 02
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 351
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 338 साधर्म्यं च विशिष्टमिति चेत्, स कोन्योऽन्यत्रैकद्रव्यक्षेत्रभावप्रत्यासत्तेरिति नान्वयनिह्नवो युक्तः / न ह्यव्यभिचारी कार्यकारणभावः संताननियमहेतुः, सुगतेतरचित्तानामेकसंतानत्वप्रसंगादिति समर्थितं प्राक् / नाप्येकसामग्यधीनत्वं समुदायैकत्वनियमनिबंधनं धूमेंधनविकारादिरूपादीनां नानासमुदायानामेकसमुदायत्वानुषंगात् प्रतीतमातुलिंगरूपादिवत्। एतेन समानकालत्वं तन्निमित्तमिति प्रत्युक्तं, एक द्रव्याधिकरणत्वं तु सहभुवामेकसमुदायत्वव्यवस्थाहेतुरिति सत्येवान्विते द्रव्ये तिलादिरूपादि-समुदायैकत्वनियमः साधर्म्य / साधर्म्य बन जाता है, अन्य तटस्थ पदार्थों का नहीं," तो जैनाचार्य कहते हैं कि विशेष सम्बन्ध एकद्रव्यप्रत्यासत्ति, एकक्षेत्रप्रत्यासत्ति और एकभावप्रत्यासत्ति के अतिरिक्त अन्य कौन हो सकता है ? भावार्थ: एक द्रव्य में उसकी भूत, वर्तमान और भविष्यत् अनेक पर्यायें तदात्मक हो रही हैं अत: उनका एक द्रव्य सम्बन्ध होने के कारण सन्तान बन जाता है। अन्य द्रव्य की पर्यायें उस सन्तान में अन्वित नहीं हो पाती हैं। तथा सजातीय अनेक पदार्थों के एक क्षेत्र में रहने रूप क्षेत्र प्रत्यासत्ति समुदाय है तथा समान रूप से परिणमन करने वाले पदार्थों का एक भाव प्रत्यासत्ति साधर्म्य है। सर्वथा भिन्न पदार्थों में सन्तान, समुदाय, साधर्म्य आदि घटित नहीं होते। इसलिए एक द्रव्य अनुस्यूत रहने वाले एकत्व वा ध्रुवत्व के अन्वय का निह्नव करना युक्तिसंगत नहीं है। अव्यभिचारी (निर्दोष) कार्य-कारण भाव सम्बन्ध तो संतान की नियत व्यवस्था का हेतु नहीं है, क्योंकि इस प्रकार मानने पर तो बुद्ध और अन्य संसारी आत्माओं के भी एक संतानपने का प्रसंग आयेगा। भावार्थ : उत्तर पर्याय की उत्पत्ति रूप कार्य में पूर्व समयवर्ती पर्याय कारण है। वह कारण कार्य-भाव सिद्ध होने पर संतान सिद्ध होती है और वह कार्य-कारण भाव ध्रुव एक द्रव्य में ही घटित हो सकते हैं, पृथक्-पृथक् द्रव्यों में नहीं, उसका पूर्व में समर्थन कर चुके हैं। एक सामग्री का अधीनत्व भी समुदाय के एकत्व की नियत व्यवस्था का कारण नहीं हो सकता है, क्योंकि ऐसा मानने पर तो अनेक समुदायों में रहने वाले धूम के रूप आदिक और गीले ईंधन के रूप आदिकों के भी एक समुदायत्व का प्रसंग आयेगा। जैसे कि प्रमाण से ज्ञात विजौरा नींबू के रूप रस आदि का समुदाय बन जाता है अर्थात्-अग्नि के प्रज्वलित होने पर गीले ईंधन के रूप और धूम के रूप आदि की सामग्री एक है किन्तु उनका समुदाय पृथक्-पृथक् माना जाता है ऐसे ही क्षेत्र भूमि, जलवायु आदि एक सामग्री होते हुए भी अनेक बीज या अंकुरों के समुदाय भिन्न-भिन्न हैं अतः एक सामग्री की आधीनता एक समुदाय का कारण नहीं हो सकती है। इस पूर्वोक्त कथन से समान कालपना भी एक सन्तानपन या एक समुदायपन का कारण है, इसका भी खण्डन कर दिया है। यद्यपि एक द्रव्याधिकरण एक साथ होने वाली पर्यायों के एक समुदाय की व्यवस्था का कारण है- परन्तु वह तीनों काल में अन्वय रूप से स्थित रहने वाले एक द्रव्य के मानने पर ही बन सकता है, अन्यथा नहीं। तथा तिल आदि रूप समुदाय के एकत्व का नियम वा साधयं का नियम भी नाना

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