Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 02
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 324
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 311 तेषां सांवृत इति चेन्न हि तत्त्वतः प्रविभक्ता एव रूपादयः समुदाय इत्यापन्नं / न चैवं केषांचित्समुदायेतरव्यवस्था साधारणार्थक्रियानियतत्वेतराभ्यां सोपपन्नेति वा युक्तं, सूर्यांबुजयोरपि समुदायप्रसंगात् / तयोरंबुजप्रबोधरव्योः साधारणार्थक्रियानियतत्वात्। ततो वास्तवमेव प्रविभागरहितसमुदायविशेषस्तेषामेकत्वाध्यवसायहेतुरंगीकर्तव्यः। स चैकत्वपरिणामं तात्त्विकमंतरेण न घटत इति सोपि प्रतिपत्तव्य एव, स चैकं द्रव्यमिति सिद्धं / स्वगुणपर्यायाणां समुदायस्कंध इति वचनात् / तथासति रसरूपयोरेकार्थात्मकयोरेकद्रव्यप्रत्यासत्तिरेव लिंगलिंगिव्यवहारहेतुः कार्यकारणभावस्यापि नियतस्य तदभावेनुपपत्तेः संतानांतरवत् / न हि क्वचित्पूर्वे रसादिपर्यायाः पररसादिपर्यायाणामुपादानं नान्यत्र द्रव्ये वर्तमाना इति नियमस्तेषामेकद्रव्यतादात्म्यविरहे कथंचिदुपपन्नः / एकमुपादानमेका सामग्रीति द्वितीयोपि पक्षः सौगतानामसंभाव्य एव, नानाकार्यस्यैकोपादानत्वविरोधात् / परिणाम को प्रतिविभाग के अभाव का हेतुपना नहीं है। (अभाव के हेतुत्व का अयोग है)। उन रूपादिकों के प्रविभाग का अभाव भी सांवृत (कल्पित) है, ऐसा कहना भी उचित नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर तो वास्तविक प्रविभक्त ही रूपादि समुदाय को प्राप्त हो जायेंगे, परन्तु ऐसा नहीं है। - तथा किन्हीं पदार्थों की साधारण अर्थक्रिया में नियत और अनियत के द्वारा समुदाय एवं असमुदाय की व्यवस्था होती है, ऐसा कहना भी अयुक्त है क्योंकि ऐसा मानने पर सूर्य और कमल के भी समुदायपने का प्रसंग आयेगा। उन सूर्य और कमल में कमल का खिल जाना और सूर्य का प्रकाशित होना रूप साधारण अर्थक्रिया का नियतपना हेतु विद्यमान है इसलिए विभाग रहित समुदाय विशेष वास्तविक हैं तथा उन रूपादिकों को एकत्वाध्यवसाय हेतु परमार्थ से स्वीकार करना चाहिए क्योंकि वह एकत्व परिणाम वास्तविकता (वा तादात्म्य सम्बन्ध) के बिना घटित नहीं हो सकता अतः रूप रस का परस्पर द्रव्य के साथ कथंचित् तादात्म्य सम्बन्ध है, ऐसा जानना चाहिए। वही गुण और पर्यायों का समुदाय एक द्रव्य है ऐसा सिद्ध होता है क्योंकि “स्वकीयं गुण-पर्यायों का समुदाय ही स्कन्ध है" ऐसा सौगत ग्रन्थ का वचन है। ऐसा होने पर एकार्थात्मक (एक अर्थस्वरूप) रूप और रस की एक द्रव्य प्रत्यासत्ति है (एक द्रव्य नामक सम्बन्ध है) और वह एक द्रव्य प्रत्यासत्ति (एक द्रव्य में तादात्म्य रूप से रहना) ही रूप, रस के साध्य साधन व्यवहार का कारण है। अर्थक्रिया में नियत कार्य-कारण भाव की भी एक द्रव्य प्रत्यासत्ति के अभाव में उत्पत्ति नहीं हो सकती। जैसे दूसरे सन्तानों का अनुभव स्मरण रूप कार्य का हेतु नहीं होता है अर्थात् महीदत्त के द्वारा अनुभूत पदार्थों का देवदत्त स्मरण नहीं कर सकता क्योंकि किसी द्रव्य में पूर्व में स्थित रसादि पर्यायें उत्तरवर्ती समय में होने वाली रसादि पर्यायों की उपादान कारण हैं परन्तु दूसरे द्रव्य में रहने वाली पूर्ववर्ती रसादि पर्यायें प्रकृत द्रव्य के रूपादिक की उपादान कारण नहीं हो सकतीं। इस प्रकार का नियम एक द्रव्यात्मकत्व के बिना किसी प्रकार भी नहीं बन सकता है। इस प्रकार ‘एकासामग्री' इस प्रकार के वाक्य में सहकारी कारण का प्रकरण समाप्त हुआ। अब उपादान कारण का वर्णन करते हैं। . "अनेक कार्यों का एक उपादान कारण होना एक सामग्री है" इस प्रकार सौगत का द्वितीय पक्ष

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