Book Title: Tarayana
Author(s): Shankuk, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ संकुअ-संकलिओ The antbologist's self-introduction गोयम-गोतुप्पण्णो भवप्पओ संकुउ त्ति नामेणं । ना यावलोय'-गोही-छइल्ल-संसग्गि-निम्माओ ॥ ५ कोशकारः स्ववश सूचयतीति सुगमम् ॥ There was one Sankuka by name, born in the family-line of Gautama, son of Bhava, who had become knowledgeable due to his contacts with the elites of the literary assembly of (King) Nāgāvaloka. (5) The nature and title of the apthology सद्द-गुणाहिनहाहि व अंतिल्ल-परिट्ठियत्थ-विहवाहिं । उच्चेउं गयवइणो गाहाओ तारयाओ व्व ॥ ६ तेणेस दास-पुण्णा गुण-सय-संपुण्ण-कव्व-रसियाण । आणाए पडिबद्धो कोसो तारायणो नाम ॥ ७ शब्दा गुणोऽस्येति शब्दगुणं नभो वैशेषिकमते । गजपतिरपि सहा: स्निग्धैर्दानशीलादिभिर्गुणैर्वति इति सार्द्रगुणः। यदि वा शब्द व्याकरण गुणितवानभ्यस्तवानिति शब्दगुण: तस्मात् अन्तर्मध्ये परि ष्ठितोऽर्थानां सागरगिरिसरित्प्रभृतीनां विभवो बाहुल्यं यस्य तद् अन्तः प्रतिष्ठितार्थ विभव नभः । गजपतिरपि अन्तर्मनसि परिष्ठितः स्थिरभूतोs. र्थस्य शब्दवाच्यस्य विभवः संपत्तिर्यस्य स तथा। तस्माच्छब्दगुणादन्त:परिष्ठितार्थविभवान्नभस इव गजपतेर्बप्पभट्टेः सकाशाद्गाथाः तारका इवोच्चित्य तेन शंकुकनाम्ना तारागणो नाम कोश एष प्रतिबद्धः। शेष सुगममिति ॥ __He collected the Gathas (composed) by Gajapati (i, e. Bappa. bhatti), who had amiable qualities (saddaguna) and whose mind was a treasury of mature meanings (paritthiyattha)-as if one would 1. नावलोय. with a added above the line in a different hand. 2. तस्मा-नः. 3. प्रतिष्ठाता. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109