Book Title: Tarayana
Author(s): Shankuk, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 39
________________ संकुअ-संकलिओ वास्तषशब्दालङ्कारादिदोषापसारणं हि काग्यविशुद्धिः। सा - न सुजनान्नापि दुर्जनात् । कथम् यतः सुजनो दोषानपि सतः सोजन्यादेव गुणीकरोति गुणतया स्थापयति । इतरो दुर्जना गुणानापि दूषयति दोषान् कति । ततः कविराह । काव्यविशुद्धिनिमित्तं न जानीमः कं समाश्रयाम इति ॥ The good would turn the faults (of others) into qualities. The other one (i. e. the wicked) would find fault even with the qualities (of others). (Such being the case,) we do not know to whom we should resort for removing defects from our poems. (20) (Index Verse 5) ता पायालमहो च्चिय तई 'असि-लट्ठीए' महियलं जेउं । 'जालाहि" वाइ विजियं जोइस-चकं तडि-निहेण' ॥२१ कोशकारः कविमालम्ब्य स्तौति यथा-हे वादिन् बप्पभट्टे, 'ता' तावत् पातालं अध एव यच्चाधास्थित तजितमेव । महीतलमपि किलासियष्टया । ज्योतिश्चक च दिव्यप्रहरणरूपतडिन्मिभेन जीयते । ततोsसियष्टिरिति पदेनेापलक्षितया वक्ष्यमाणगाथया ज्योतिश्चक्र विजितम् । एतदुक्त भवति । ईदृगर्थ गाथावयस्य रचयिता कपिर्न पाताले न भुषि न नभस्तले वाऽन्योस्तीति त्रिभुवनमपि कवित्वेन त्वया जितमिति ॥ O Vadin (i. e. Bappabhatti), having first conquered the nether world below and also the whole of the earth by means of your (Gatha containing the keyword) asi-lathi ('rod-like sword'), you conquered the sky (lit. 'the revolving wheel of luminaries't with your (Gatha containing the key-words) jālā and tadi-nihena (i. e. 'lightning flashes'). (21) The lightning-sword being sharpened [8] उय जोइंगण-परिगय-जलहर-पेरंत-घोलिरी विज्जू । निग्गय-फुलिंग-साणा-निसिज्जमाणी सिलट्ठि व्ध ॥ २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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