Book Title: Tarayana
Author(s): Shankuk, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 76
________________ तारागणो ८७ [64] दूसह-विरह-भुयंगम-निद्दय-डक्का वि धरइ सा वरई । ___ तुह दंसण-संजीवणि-विणिओय-वसेण सुइणम्मि ॥९३ दुःसह विरहो एव भुजङ्गमः सर्पस्तेन निर्दयं दयारहित यथा भवत्येवं “डका वि' दष्टाऽपि सती । 'सुइणम्मि' स्वप्ने यत्तव दर्शन तदेव संजीवनी संजीवनी नाम बरौषधिस्तस्या विनियोगो विनियोजन तस्य वशस्तेन । स्वप्ने तव दर्शनसंजीवनीविनियोगवशेन ‘सा वरई' सा वराकी 'जं धरइ' जीवति ।। Eventhough she is bie pitalessly by the snaku in the form of unbearable separatin, the poor gir! manages to survive through applying the Samjivani herb in the form of your sight in dreams. (93) [65] दाविय-कर-पल्लवयं उत्तर-पडु(?डिउ)त्तरेहिं जपंती । तई सह चिंता-दिट ठेण केण न नडि व्व सा दिट्ठा ॥९४ 'दाविय' दर्शितं करपल्लवं यस्मिन् जल्पने तद्दर्शितकरपल्लवकं यथा भवत्येव उत्तरप्रत्युत्तरैः जल्पन्ती वदन्ती 'तइ सह' त्वया सह । 'चिंतादिह्रण' चिंतादृष्टेन, ध्यानप्रत्यक्षीकृतेन त्वया सह दर्शितकरपल्लवं जल्पन्ती नटीव सा बाला केन न दृष्टा । सर्वेणापि दृष्टेत्यर्थः ।। Who did not see that girl, behaving like a stage actress, when she, making gestures with her hands carried on with you, vbo were seen by her with her mind's eye, a conversation full of replies and counter-replies ? (94) [66] सहियाण सयं कवियं तह कहइ कहाणयं पुलइयंगी । जह न कलिजइ तुह गोत्त-कित्तणेहिं पि पुणरुत ॥९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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