Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah

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Page 53
________________ श्री तपगच्छ तो सूरिजीए तमाम त्याग करी ॐकारनो जाप शरु को अने जीवननी छेल्ली क्षणे पण ॐकार जपतां तेमणे कायाने विसर्जन करी. जैनसमाजमां क्षणवारने माटे शोकनी अमावास्या छवाई गई. छतां तेमनी पवित्रतानी पूर्णिमा तो आजे पण सदोदित छे. श्री मोहनलालजी महाराज (जुओ चित्र नं. ७) अलबेली मुंबई नगरीमा धर्मना अंकुर वाववानी पहेल करनार अने तेमांथी विशाळ धर्मवृक्ष बनावनार श्री मोहनलालजी महाराज जैन समाजमां जाणीता छे. __ तेओश्रीनो जन्म मथुराथी २० माइल दूर चांदपुर नामना गाममां ब्राह्मण कुलमा वि. सं. १८८७ना वैशाख सुद ६ ना रोज थयो हतो. तेमना संसारी पितानुं नाम बादरमल्ल अने मातानाम सुन्दरी बाई हतुं. मातापिताए पोताना आ लाडका पुत्रनुं नाम मोहनजी राख्यु. मोहनजी नानपणथी ज यतिवर्गना संसर्गमां आववा लाग्या. धर्मनी असर आ वखतथी ज थई. पिताए पुत्रनी इच्छा परखी यतिवर्य श्री रूपचन्दजी पासे रहेवा दीधो. नव वर्षनी नानी वयमां पंचप्रतिक्रमण, जीवविचार, प्रकरण आदिनो अभ्यास करी लीधो. वि. सं. १९०३मां तेओ यतिवर्थ साथे फरता फरता 'मगशीजी पार्श्वनाथ 'नी यात्राए गया. अीं तेओने दीक्षा आपी पोताना शिष्य जाहेर कर्या. अहीथी तेओए यतिवर्य साथे पूर्व देश तरफ विहार कर्यो ने यतिपणामां मुख्यत्वे ते देशमा ज विचरता रह्या. वि. स. १९१०मा यतिवर्य श्री रूपचन्दजी कालधर्म पाग्या. मोहनलालजीए खरतरगच्छीय श्री महेन्द्रसागरजी पासे रहीने शास्त्राभ्यास कर्यो. एकदा तेओ कलकत्तामा पधार्या त्यारे एक श्रावके प्रथम दर्शने वंदनने बदले प्रणाम कर्या. यतिजीना दिलमा आथी बहु मनोमंथन पेदा थयु. तेओने लाग्युं के साचा धर्मनी प्ररूपणा करवी जोइए. कलकत्ताथी विहार करी काशी वगेरे स्थळेानी मुलाकात लेता तेओ अजमेर आल्या. अहीं तेमणे स्वतः श्री संभवनाथ भगवाननी सामे सं. १९३१मा संवेगीपणुं स्वीकारी यतिपणानो त्याग को. तेओश्रीए प्रथम चतुर्मास पाली (मारवाड)मां कयु. आ पछी बीजां छ चतुर्मास मारवाडमां ज करी सातमुं चोमासुं जोधपुरमा कयु. अहीं तेमणे आलमचन्दजी, जशमुनि, कांतिमुनि, हर्षमुनि आदि साधु बनाव्या. ते पछी गूजरात तरफ प्रयाण कयें. ___ सं. १९४४नुं चतुर्मास तेओए अमदावादमां कयु. आ रखते तेमणे मुंबईना धर्मविहीन क्षेत्रनी दुर्दशा सांभळी. आवा महान शहेरमां जैनधर्मनी प्रभावना करवानी उत्कंठा जागी, ने वि. सं. १९४६मा सुरतमां चतुर्मास करी मुंबई तरफ बिहार को. वि. सं. १९४७ना चैत्र सुद ६ना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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