Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah
View full book text
________________
श्री तपगच्छ
___ आर्य खपटाचार्य आर्य खपटाचार्यजी कालिकाचार्यना भाणेज बलमित्र अने भानुमित्रना समयमा भरुचमा थया हता. तेमणे बौद्वोने वादमां जीती त्यांन प्रसिद्ध अश्वावबोध तीर्थ जैनसंधने ताबे कराव्युं हतुं. तेमणे गुडशरखपुरमा यक्षनो उपद्रव निवार्यो हतो अने त्यांना बौद्रवादि वृद्धकरने जीतीने त्यांना राजाने प्रतिबोध करी जैनधर्मी बनाव्यो.
ए ज समयमां पाटलीपुत्रमा शुंगवंशनो राजा दाहड-देवभूति हतो. तेणे ब्राह्मणोना कहेवाथी एवो हुकम को हतो के जैन साधुओ राजाने प्रणाम करे अने दरेक दर्शनवाळा स्वसिद्धांत छोडी दे. जे आq नहि करे-राजाज्ञा नहि माने-तेमने प्राणदंडनी सजा थशे. आथी जैन-श्रमणो खळभळ्या अने महाविद्यासिद्ध खपटाचार्यने भरुचथी बोलाव्या. आचार्य राजाने अने ब्राह्मणोने सजा करी सत्यधर्मनुं भान कराव्यु अने अन्ते त्यांना ब्राह्म गोने जैनी दीक्षा आपी, राजाने प्रतिबोधी जैन बनाव्यो.' प्रभावकचरित्रमा आर्य खपटनी साथे तेमना शिष्य उपाध्याय महेन्द्रनुं नाम पण मळे छे. आर्य खपटनी पासे परम प्रभाविक पादलिप्तसूरिए अभ्यास को हतो. वीरनिर्वाग संवत् ४८०मां आचार्यश्रीनो स्वर्गवास थयो हतो.
पादलिप्तसरि आ महान् विद्यासिद्ध अने प्रभावक आचार्य थया छे. तेमणे पाटलीपुत्रना राजा मुरुंडने प्रतिबोधी जैनधर्मी बनायो. तेम ज मानखेटना राजकृष्णराजने उपदेश आपी जैनधर्मी बनावेल छे. कृष्णराना अने तेनी सभा आचार्य महाराज उपर अतिशय अनुराग धरावती. आचार्य श्री घणो वखत त्यां रह्या छे. भरुचमां ब्राह्मणोए उठावेल उपद्रव तेमणे टाळ्यो. प्रतिष्ठानपुरना सातवाहनने पण उपदेश आपी जैनधर्मगां वधु दृढ बनायो. तेमना गृहस्थ-शिष्य महायोगी नागार्जुने आचार्यश्रीना नामथो शत्रुजयनी तलाटीमां पादलितपुर वसाव्यु जे अत्यारे पालीताणा कहेवाय छे. त्यां शत्रुजय उपर तेमणे वीरचैत्य बनायुं अने पादलिप्तसूरिजीनी प्रतिमा पण बनावरावी. आचार्य महाराजे तरंगलोला, निर्वाणकलिका, प्रश्नप्रकाश आदि ग्रंथो बनाव्या छे. कालिकाचार्य, आर्य खपटाचार्य अने पादलिप्तसूरि लगभग समकालीन छे. तेओ वीरनिर्वाणनी पांचमी शताब्दिमां थया छे. तेओ शत्रुजयपर अनशन करी स्वर्ग सिधाव्या. तेमणे शकुनिका विहारनो जीर्णोद्धार कराव्यो हतो.
सिद्धसेन दिवाकर आवृद्धवादिसूरिना शिष्य अने महाप्रतापी राजा विक्रमना प्रतिबोधक-धर्मगुरु हता. एमणे बंगालना कुर्मारपुरना राजा देवपालने प्रतिबाधी जैन बनायो हतो. आचार्यश्रीए अवन्ति पार्श्वनाथनी प्रतिमा जे ब्राह्मणोए दबावी हती तेने बहार काढी हती. प्रथम वीरद्वात्रिंशिका रची अने पछी कल्याण
१. प्रभावकचरित्र अने चतुर्विंशतिप्रबन्ध,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142