Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah

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Page 135
________________ श्री तपगच्छ पळावी हती. सूरिजी भारतनी एक अलौकिक विभूति हता. तेमना तेज, पुण्य अने प्रभाव आगळ मोटा मोटा सम्राटो, सुलतानो, राजा महाराजाओ, धनाढ्यो अने दिग्गज पंडितो शिर झुकावता हता. जैन साधुओना त्यागी जीवननो खरो परिचय सूरिजीए जगत्ने करायो हतो. सूरिजीए जे बीज रोप्यु हतुं तेने तेमना ज शिष्यरत्नोए अने बीजा साधुओए पण पोषण आप्युं हतुं. अन्ते गूजरातना आ सुपुत्र, भारतनी महान् विभूति अने जैन-श्रमण-संस्कृतिनी आदर्श प्रतिमा समा आ सूरिवर १६५२ना भादरवा सुदि ११ उनामां स्वर्गे सिधाव्या. सूरिजी पछी उपाध्याय श्री शांतिचन्द्रजी, सिद्धिचन्द्रजी, भानुचन्द्रजी (कादम्बरीना टीकाकार) आदिए अकबर बादशाहने उपदेश आपी घणां सुकृत्यो कराव्यां छे. तेओए डाबर सरोवरनी हिंसाशिकार बंध कराव्यो, पांच जैन तीर्थो श्वेतांबर संघने सेांपावराव्यां; जैनसंघनी अनेक आपत्तिओ बंध करावी अने जहांगीर, शाहजहां आदि राजपरिवारने पग धर्मोपदेश आप्यो. इडरगढना महाराव नारायणसिंह अने बांगड देशना धोत्शील नगरना राजानी सभामा दिगंबराचार्योने उ. शांतिचन्द्रजीए हराव्या हता. सिद्धिचन्द्रजीने सम्राट अकबरे "खुशुफहेम"नुं मानवंतुं बिरुद आप्युं हतुं. हीरविजयसूरि एक समर्थ युगप्रवर्तक पुरुष हता. तेमनो युग हीरयुग कहेवाय छे. सम्राट अकबरे तो सूरिजीना मिलन पछी सूरिजीने एक समर्थ धर्म गुरु, परम हितस्वी मित्र अने धर्ममूर्ति तरीके आजीवन याद राख्या छे. जिनचंदसरि हीरविजयसूरिजीए जे मार्ग उघाड्यो हतो तेनो लाभ बीजा जैनाचार्योए पण लीधो छे. मंत्रीश्वर कर्मचंद्रजीनी सूचना अने आग्रहथी अकबरे जिनचंदसूरिजीने पोतानी पासे लाहोरमां बोलाव्या हता. जिनचंदसूरिजोए चमत्कारथी अकबरने आको हतो अने जगद्गुरु श्री हीरविजयसूरिजीनी माफक पोताने पण फरमान मळे एनी मांगणी करी हती. (जूओ श्री जिनचंदसूरिजीने मळेलु फरमानपत्र.) तेमणे सं० १६४८मां गूजरातमा खंभातथी अषाढ शुदि ८ मे विहार को अने चतुर्मासमा चालता चालतां पर्युषणा जालोर कयां अने चतुर्मास त्यां व्यतीत कर्यु. पछी अनुक्रमे फागण शुदि १२ लाहोर पहेांच्या अने सम्राट्ने धर्मोपदेश संभळाव्यो. एक वर्ष सम्राट्ने उपदेश संभळावी तेओ हापुड पधार्या हता. (५९) विजयसेनसरि आ एक महाप्रभावशाली जैनाचार्य हता. तेमणे अमदावादना सुबा खानखानानने उपदेश आप्यो हतो. सम्राट अकबरे श्री हीरविजयसूरिजीनी वृद्धावस्था होवा छतां अने सेनसूरिजोनी श्री हीरविजयसूरिजी पासे आवश्यक्ता हती छताये श्री हीरविजयसूरिजीना शिष्यो प्रत्ये अपूर्व मान होवाथो विजयसेनसूरिजीने लाहोरमां धर्मोपदेश देवा बोलाव्या, अने विजयसेनसूरिजी पासे धर्मोपदेश सांभळ्यो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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