Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah
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श्रमण वंशवृक्ष
(४४) जगच्चंद्रसूरिजी
महात्यागी अने परम तपस्वी आ आचार्यनी घोर तपस्या अने उत्कट व्याग जोई मेवाडनरेश जैत्रसिंहे तेमने तपानुं बिरुद आप्युं हतुं. दीक्षा लीधा पछी तेमणे आजीवन आंबिलनी तपश्चर्या करी हती. मेवाडनरेश - चित्तोडनो राजा तेमनो परम भक्त हतो अने तेमणे राजसभामा बत्रीस दिगम्बरवादिओने जीत्या हता अने तेओ हीरानी माफक अभय रह्या हता तेथी तेमने “हीरला " नुं बिरुद आप्युं हतुं. मेवाडनो राजवंश आज पण तपागच्छना आचार्यनुं बहु मान करे छे. वडगच्छनुं नाम आ आचार्यथी तपगच्छ जाहेर थयु. तेमने १२८५ मां बिरुद मळ्युं. तेरमी शताब्दिना आ महान् आचार्य थया. राणा जैत्रासिंहना १२७० - १३०९ सुधीना शिलालेखो मळे छे. मेवाडना राजवंशमां आ सूरिजीना समयथी ज जैनधर्मनो प्रवेश थयो. जे थोडेधणे अंशे अद्यावधि विद्यमान छे.
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(४५) देवेन्द्रसूर
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आ आचार्य महाराज कर्मग्रन्थ अने श्राद्धदिनकृत्यादि अनेक ग्रन्थोना रचयिता, अने मेवाड नरेश वीर केसरी समरसिंह अने तेनी माता राणी जयतल्लादेवीना प्रतिबोधक हता. तेमना उपदेशथी राणी जयतल्लाए चित्तोडना किल्लामां सामळीया पार्श्वनाथजीनुं मंदिर बनान्युं हं. गूजरातना राजा वीरधवलनी तेमना उपर घणी सारी भक्ति हती. वस्तुपाल अने तेजपाल पण तेमने परम पूज्य मानता हता. मेवाडनरेश समरसिंहे देवेन्द्रस्म्रिजी अने आचार्य अमितसिंहसूरिना उपदेशथी राज्यमां अमारी पळावी हती. तेमनो १३२७मां स्वर्गवास थयो. अनेक राजाओ उपर तेणे सुन्दर प्रभाव पाड्यो हतो.
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१. राजपुतानाना इतिहासमा रा. ब. गौरीशंकर हीराचंद ओझा लखे छे " तेजसिंह की राणी जयतल्लदेवीने जो समरसिंहकी माता थी, चिंतोड पर श्यामपार्श्वनाथ का मंदिक बनवाया था. " -१० ४७३ २. देवेन्द्रसूरिजीनों मेवाडना राणाओं उपर के प्रभाव हतो ए माटे ते वखतना राणानु एक फरमान वांचवा छे छे :---
तपगच्छ का
" स्वस्ति श्री एकलिंगजी परसादातु महाराजाधिराज महाराजाजी श्री कुंभाजी आदेसातु मेदपारा उमराव थावदार कामदार समस्त महाजन पंचाकस्य अप्रं आपणे अठे श्री पूज देवेन्द्रसूरिजी का पंथ का, तथा पुनम्यागच्छ का हेमाचारजजी को परमोद है । घरम ज्ञान बतायो सो अठे अणांको पंथको होवेगा जणीने मानागा, पूजागा । परथम ( प्रथम ) तो आगे ही आपणे गढकोट में नवदे जद पहीला श्ररिषभदेवजीरा देवराकी नींव देबाडे हे, पूजाकरे हे अ अजुही मानेगा। सिसोदा पगका होवेगा ने संरपान ( सुरापान ) पीबेगा नहि और धरम मुरजाद में जीवराखण यामुरजादा लोयगा जणीने महासत्रा ( महासतियों ) की आण है, और फेलकरेगा जणीने तलाक है. सं० १४७१ काती सुद ५. "
---( अयोध्याप्रसाद गोयलीय कृत “ राजपुताना के जैनवीर,” पृ० ३४० )
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