Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah

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Page 127
________________ श्री तपगच्छ ५४ तेमनुं व्याख्यान सांभळवा जता. भूवनपाल राजाए तेमना उपदेशाथी जैनमंदिरमां पूजा करनाराओना कर माफ कर्या हता. सौराष्ट्रनो राखेंगार पण तेमनो भक्त हतो. शाकंभरीना राजा पृथ्वीराजे तेमना उपदेशथी जैनधर्म स्वीकार्यो हतो अने रणथंभोरमां जैनमंदिर बनायुं हतुं, अनेना उपर सोनानुं शिखर (इंडु) बनाव्युं हतुं. तेमना स्वर्ग समये अजमेरनो राजा जयसिंहराज तेमनी स्मशान यात्रामां आव्यो हतो. अजमेरना राजा उपर तेननो जबरो प्रभाव हतो. तेओ १९६४मां विद्यमान हता. सिद्धराज जयसिंह पण तेमनुं व्याख्यान सांभळवा आवतो. तेमणे अनेक ग्रंथो बनाया छे. अमरचंद्रसूरि तेओ प्रखर वादी हता. सिद्धराज जयसिंहनी सभामां एक वादी साथे जय मेळवावाथी सिद्धराजे तेमने "सिंहशिशुक' नुं मानवंतु बिरुद आप्युं हतुं. तेमणे सिद्धांतार्णव ग्रंथ बनाव्यो छे. वादी श्री देवसूरि o आचार्य प्रखर नैयायिक अने तार्किक - शिरोमणि हता. तेमणे स्याद्वादरत्नाकर नामनो ८४ हजार श्लोकनो न्यायनो महान् ग्रंथ बनाच्यो छे तेमणे नागपुरना राजा आल्हादनने उपदेश आपी जैनधर्मनो अनुगगी बनाव्यो हतो. गुर्जरेश्वर सिद्धराज जयसिंहनी सभामां दिगम्बरो वादी कुमुदचंद्र वादमा हरावी जय मेळव्यो हतो. सिद्धराज जयसिंह तेमने बहु माननी नजरे जोतो. आवी ज रीते वीराचार्य चंद्रगच्छनी पांडिल्य शाखाना आचार्य थया छे. तेमणे सिद्धराज जयसिंहनी सभामां सांख्यतत्त्वना वादीने जीत्यो हतो, तेथी सिद्धराजे तेमने “वादिसिंह" नुं बिरुद आप्यु हतुं तेमज कमलकीर्ति नामना दिगम्बराचार्यने पण तेमणे वादमां राजसभामां जीत्यो हतो. सिद्धराज जयसिंह तेमने बहु मान आपतो. आ बारमी सदाना महान् आचार्य १९६० मां थया छे. afeteria श्री हेमचन्द्राचार्यजी जैनधर्मना इतिहासमाज नहि किन्तु भारतना पुण्यश्लोक इतिहासमां श्री हेमचन्द्राचार्यजीनुं नाम शरद पूर्णिमाना चन्द्रनी माफक प्रकाशित छे. संसारना अत्यन्त प्रतिभासंपन्न अने महान् विद्वानो, ओ ने ज्ञानिओमां श्री हेमचन्द्राचार्यनुं स्थान घणुं ज मानवंतु अने गौरव भर्युं छे. श्री हेमचद्राचार्यमा अलौकिक विद्वत्ता अने अगाध पांडित्य हतां. तेमनी सर्वतोमुखी प्रतिभा आज पण संस्कृत साहित्यकाशमां सूर्यनी माफक चमकारा मारी रही छे. तेमणे विविध विषयोना जे महान् ग्रन्थो लख्या छे तेथी संस्कृत, प्राकृत साहित्य आजे पण देदीप्यमान छे. भगवान् महावीरना शासन पर घणा घणा परिषहो अने उपसर्गो आप्या छे. अने ते ते समये जैनशासनमा अनेक प्रभाविक आचार्यो थया छे अने ते परिषहो अने उपसर्गों तेमणे दूर कर्या छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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