Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah
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श्री तपगच्छ
मल्लवादी आ नामना त्रण आचार्यो थया छे : (१) प्रसिद्ध बौद्धवादि विजेता अने द्वादशारनयचक्रना रचयिता, (२) लघुधर्मोत्तरना न्यायबिन्दु उपर टिप्पण कर्ता अने (३) जेमनी काव्यशक्तिनी प्रशंसा महामात्य वस्तुपाले करी छे ते.
अहीं आपणे प्रथम मल्लवादी ज लेवा छे. तेओ वल्लभीना शिलादित्यना भाणेज अने भरुचना राजपुत्र हता. एमणे बहु नानो उम्मरे मातानी साये दीक्षा लीधी, अने टुंक समयमां शास्त्रनो सारो अभ्यास को. पछी तेमने जैनसंघनी अल्पता साली. एकवार माताने जैनसंवनी अल्पता- कारण पुज्यु, माताए कयुं तारा मामानी सभामा श्वेताम्बराचार्यनो पराभव थवाथी बधे बौद्धोनुं जोर छे. मल्ल कहे छे के हं त्यां जई जीती आवीश. शाशनदेवीनी कृपाथी सज थई वीर तेजस्वी मल्लवादी मामानी सभामां जई राजाने वादन आह्वाहन करे छे, बौद्धाचार्य वाद करवा आवे छे पण अन्ते हारे छे. आ वादमा एवी प्रतिज्ञा हती के जे हारे ते देश छोडे. अन्ते बौद्धो देश छोडी चाल्या जाय छे. शत्रुजयतीर्थ जे बौद्धोना ताबामां गयुं हतुं ते पाळु मेळ युं अने राजा शिलादित्यने जैन बनायो. तेमणे बार हजार श्लोक प्रमाणनो नयचक्र ग्रन्थ बनाव्यो, जेने माटे हरिभद्रसूरिजी पोताना ग्रन्थोमां तेमनो बहु मानपूर्वक उल्लेख करे छे. तेभ ज २४००० श्लोक प्रमाणनो जैन रामायणनो ग्रन्थ-“पदा चरित्र" बनाव्युं. तेम ज सिद्धसेन दिवाकरजीना सन्मतितर्क उपर सुंदर न्यायवाळी टीका रची हती. जे उपलब्ध नथी. नयचक्र उपरनी तेमनी टीका आजे जैन भंडारोमां क्यांक क्यांक मळे छे. मूळ ग्रन्थ दुर्लभ छे. विक्रमनी छट्ठी शताब्दीना आ महान् आचार्य छे.
श्री हरिगुप्तमरि श्वेतहणतोरमाण जे विक्रमनी छठी शताब्दीमां थयेल छे ए राजाने हरिगुप्तसूरिजीए प्रतिबोध करी जैनधर्मी बनाव्या हतो. जेना फलस्वरूप राजाए भिन्नमालमां श्री ऋषभदेवजी मोटुं मंदिर बनाव्यु. विक्रमनी छट्ठी शताब्दीमा आ आचार्य महाराज थया छे.
(२०) मानतुंगमरि आ आचार्य भक्तामरस्तोत्रना कर्ता अने धारानगरीना वृद्ध भोजदेवना धर्मोपदेशक हता. वृद्ध भोजदेवनी सभाना पंडितो हर्ष, मयूर अने बाण बहु विद्वान हता. तेओ महाकवि अने पंडित हता. तेमनी सामे भक्तामरस्तोत्र बनावी तेमणे राजाने बहु चमत्कार पमाड्यो हतो अने जैनधर्मनो खूब प्रभाव फेलाव्यो हतो. विक्रमना सातमा सैकाना आ महान् आचार्य थया. (विशेष माटे प्रभावकचरित्र जुवो.)
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