Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ ११ श्रमण वंशवृक्ष सं. १९५३ ना जेठ सुदी आठमनी सांजनुं तेमनुं प्रतिक्रमण छेल्लुं प्रतिक्रमण बन्यु. मधराते तेओ जाग्रत थई शौच जई आवी हाथ पग धोई आसन पर बेसी गया. अर्हन् अर्हन् शब्द तेगना मुखमांथी सरी रह्या हता. शिष्य समुदाय वगेरे आसपास वीटळाई वळ्यो हतो. थोडी वारे तेओए कह्यु: भाई, अब हम चलते हैं, सबको खमाते हैं.' आ पछी थोडीवार अर्हन्नी धूनमा रह्या ने ते ज शब्दो बोलतां स्वर्गवाम सीधावी गया. सदेव, सद्गुरु ने सद्धर्मनी प्ररूपणाने जीवन-कर्तव्य समझनार शासननो साचो सितारो अदृश्य थयो. श्री विनयविजयजी महाराज ( स्थवीर) (जुओ चित्र नं. ११) आत्माना उद्धारना रसिया सदा विषयकीचथी अळगा रहेवा मथ्या करे छे. विषयकीचनो जरा जेटलो स्पर्श न थाय तेनी सावधानीमा रहे छे. पण बीरला ज संसारना कीचमां पड़ी तेमांथी बहार नीकळा पोतानो उद्धार साधी ले. छे स्थवीर श्री विनयविजयजी महाराजनी गणतरी एवामां गणी शकाय. तेमनो जन्म काठियावाडना अलबेला शहेर जामनगरमां वीशाश्रीमाळी ज्ञातिमा वि. सं. १९१४ना मागशर सुदी १३ ने दिवसे थयो हतो. तेमना पितानुं नाम शाह देवजी लाधा हतुं ने मातानुं नाम चोथीबाई हतुं. ओधवजीने वे भाई अने चार बहेनो हती. बाल्यावस्थाथी ज औषवजीना संस्कारो बहु धार्मिक हता. योग्य उमर थतां लक्ष्मी रळवा तेओ मुंबई गया. अहीं सत्यनिष्ठाए ठीक कमाया. त्यांथी पुनः जामनगर आवी जमनाबाई नामनी सुकन्या साथे पाणीग्रहण कयु. संसारना बधा रागरंगमां पड्या हता, पण वैराग्य भावनानो दीपक तेटलो ज सतेज झळहळी रह्यो हतो. साधु अने साधर्मिक पूजाना ते पूरा रसीया हता. फरीथी मुंबई जबान थतां तेओ पूज्य मोहनलालजी महाराजना परिचयमां आव्या. धर्म उपरनी प्रीति गाढ बनी. पत्नी जमनाबाईने पण ए धर्मरंग लगाड्यो अने दंपतीए ब्रह्मचर्य व्रत धारण कयु. आ पछी जामनगरमां तेमने श्री उद्योतविजयजी तथा प्र. कान्तिविजयजी महाराजनो संसर्ग थयो. संसारना कोचमांथी संपूर्णपणे नीकळी जबानो विचार को. ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर्य साडा छ वर्ष व्यतीत थवा आव्यां हता. तेमणे सगांवहालां अने पत्नीनी रजा मेळवी वि. सं. १९५५ना वैशाख सुद ६ना रोज मोटी धामधूमपूर्वक मुनिराज श्री उद्योतविजयजीना शुभ हस्ते पं. श्री कमलविजयजी ( आ. श्री विजयकमलसूरिजी )ना शिष्य तरीके दीक्षा लीधी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142