Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah

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Page 62
________________ भ्रमण वंशवृक्ष तेमनी ख्याति वधती ज चाली. वि० सं० १९८१ ना मागशर शुक्ला पंचमीए छाणी मुकामे श्रीमद् विजयकमळसूरिजीए तेमने आचार्य पदथी विभूषित कर्या. घणो समय ज्ञानध्यान अने शासन प्रभावनामां व्यतीत कर्या पछी अति तपश्चर्याने कारणे वि० सं० १९९२ ना माह मासमां तेओश्री कालधर्म पाम्या. जैन श्रमणताना आकाशनो एक तेजस्वी तारक खरी गयो. श्री हीरविजयसूरिजी (जुओ चित्र नं. १३) अहिंसाना इतिहासमां, भारतना इतिहासमां अने जैनश्रमणताना इतिहासमां जेओनुं नाम सोनेरी शाहीथी लखाय छे, जेमना पवित्र स्मरणने हजारो मानवीओ अभिवादन आपे छे अने जेमनो चिरंजीव अक्षरदेह आजे पण तेटली ज उन्नत रीते हैयात छे, ए श्री हीरविजयसूरीश्वरजी जगतनी महामूली व्यक्तिओमांना एक हता. सैकाओ बाद प्रगटता पुण्यश्लोक व्यक्तित्वमांना एक अजोड पुण्यप्रभावक हता. तेओश्रीनो जन्म सं. १५८३ मां पालणपुरमा थयो हतो. पितानुं नाम कुंराशाह ओसवाल अने मातानुं नाम नाथीबाई हतुं. हीरो तेमनु संसारी नाम, तेर वर्षनी वये मातापितानो स्वर्गवास थयो. हीरो पाटण पोतानी बेनने त्यां गयो. अहीं तपागच्छना श्री विजयदानसूरिना उपदेशे तेने सं. १५९६ मां दीक्षा लेबरावी. आ पछी विद्याभ्यास करी प्रचंड विद्वता प्राप्त करी. ओ विद्वत्ताथी आकर्षाई तेमना गुरुश्रीए सं. १६०७ मां पंडितपद आप्यु. सं. १६०८ मां वाचक उपाध्याय पद आप्यु. सं. १६१० मां सीरोहीमा आचार्य पद आपी श्री हीरविजयसूरि नाम आप्यु. सं. १६२२ भां गुरुश्रीनो स्वर्गवास थतां तेओश्री तपगच्छाधिपति थया. निष्पाप मार्गनी प्ररूपणा करनार तरीके सम्राट अकबर तेओश्रीने आमंत्रण आप्युं ने ते तेमनो भक्त बन्यो. बादशाहनी त्रीजी आंख जेवा शेख अबुल फजले पण तेओश्री साथे अपूर्व परिचय साध्यो. सूरिजीए अमारी, जैनतत्व प्रचार अने प्रामाणिक न्याय माटे अपूर्व प्रयास को. सम्राट अकबरे तेमनी साधुताथी अंजाई वि. सं. १६४० मां जगदगुरुनु पद आप्यु. आ पछी संपूर्ण जीवन धर्मप्रचार माटे व्यतीत करी, सम्राट अकबरने प्रतिबोधी, ते द्वारा अनेक पुण्यकार्यो करी सूरिजी वि. सं. १६५२ मां स्वर्गधाम सीधाव्या. श्री मणिविजयजी दादा ( जुओ चित्र नं. १४) दादाना नामथी सुप्रसिद्ध, आजना ६८० जेटला संवेगी साधुओमाथी ३५० जेटला साधुओना आद्य जनक अने जैनसमाजना अनेक प्रखर प्रतापी सूरिवरो तथा मुनिवरोना गुरुवर्य श्री मणिविजयजी दादा संवेगी साधुताना इतिहासना आद्य प्रणेता छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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