Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah

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Page 67
________________ श्री तपगच्छ रही शास्त्राध्ययन कर्यु. समेतशिखर वगेरे तीर्थनी यात्रा करी तेओ गूजरातमां पाछा आव्या. पालीताणाम सं. १९६८ मां आजना श्री यशोविजयजी जैन गुरुकुळनुं प्रथम बीजारोपण कर्यु ने तेने विकसात्र्युं वि. सं. १९६९ मां पालीताणामां जलप्रलय थयो तेमां खूब जीवदया बताची. आ पछी तेओश्री कच्छमां गया ने त्यांना सामाजिक तेमज धार्मिक जीवननी उन्नति माटे घणा प्रयासो कर्या. तेमणे घणा राजाओने तथा अमलदारोने जैनधर्मना प्रेमी बनाव्या ने जीवननी अन्तिम पळ सुधी सेवा ने सत्यनी उपासना करी. सं. १९७४ मां हिंदने इन्फल्युएन्झाए घेरी लीधुं. कच्छमां पण ए रोग फैलायो. मुनिराज श्री ए वेळा अंगीयामां हता. तेमना शिष्योने ए रोगे झडप्या. मुनिराज श्री तेमने बचावत्रा जतां पोते पाया भने समाधिपूर्वक आसो वद ९ नी रात्रिए कालधर्म पाम्या आजे तेमनी पांछळ श्री दर्शनविजयजी, श्री ज्ञानविजयजी, श्री न्यायविजयजी (दिल्हीवाली त्रिपुटी ) आदि विद्वान शिष्य मंडली तेमना नामने उज्ज्वल करो रही छे. ૧૮ श्री बुद्धिविजयजी महाराज ( श्री बुटेरायजी महाराज ) ( जुओ चित्र नं. १९ ) आजनी संवेगी साधुताना आदि प्रचारक, सत्यवीर श्री बुटेरायजी महाराजनो जन्म इ. सं. १८६३मां पंजाबमां लुधियाना नजीक दुलवा गाममां थयो हतो. तेमना पितानुं नाम टेकसिंह मातानुं नाम कर्मादे हतुं. अडग धर्मवीरता माटे पंकायेल शीख कोममां जन्मेल आ बाळकनुं नाम बटेल सिंह हतुं. भारतमां राजकान्तिनो भडको थइने बुझाई गयो हतो, पण धर्मक्रान्तिनां बी बधे ववाई गयां हां. बटेलसिंहने नानपणथी धर्म तरफ आकर्षण हतुं अने एक दिवस मातानां आंसुओं बच्चे मणे साधु थवा गाटे गृहत्याग कर्यो. बटेलसिंहे गुरु माटे ठेर ठेर भटकी संन्यासी, बावा ने अबधूतोनो परिचय साध्यो. पण तेमां निष्फळता मळी. निराश थई ते घेर पाछा फर्या. पंजाब आ वेळा यतिओनुं अने स्थानकवासी साधुओनुं परिबळ हतुं. पण यतिवर्ग कंचन r कामिनीनो लोभी थतो जतो होवाथी स्था० साधुओ तरफ लोकोनी भक्ति जामती हती. बटेलसिंह ने पण आकर्षण थयुं ने सं. १८८८मां पचीस वर्षनी तरुण वये स्था० दीक्षा लोधी. नाम बुटेरायजी राख्युं. सत्यनी शोध माटे नीकळेला बुटेरायजीए जिनागम अने जिनवाणीनो अभ्यास कर्यो. पण मांथी तेमने नवाज ज्ञाननी प्राप्ति थई. तेमने लाग्युं के अमारुं वर्तन जिनागम मुजब नथी. आ चोवीसे कलाक मुहपत्ति बांधवी ते अने मूर्तिपूजानो विरोध शास्त्रीय नथी. बस, अहींथी तेओनुं मंथन शरु थयुं. स्था० समाजमां ज्यारे आ विचारो प्रसर्या त्यारे धरतीकंप जेवी लागणीओ जन्मी, बुटेरायजीने नष्टभ्रष्ट करवानी धमकी अपाणी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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