Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah
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श्री तपगच्छ
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विक्रमनी चौदमी सदीना प्रारम्भमां शासनदेवीए संग्राम सोनीने जणान्युं के- 'हे संग्राम ! भारतमा उत्तमोत्तम गुरु आ० श्री देवेन्द्रसूरि छे, तेनो मुनिवंश विस्तार पामशे अने युगपर्यंत चालशे. तुं ए गुरुनी सेवा कर. - ( गुर्वावली, श्लोक - १३८) विक्रमनी चौदभी सदीना उत्तरार्धमा खरतरगच्छीय आचार्यवर्य श्री जिनप्रभसूरने पद्मावती देवीए प्रत्यक्ष थई जणान्युं के
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" तपगच्छनो दिन प्रतिदिन अभ्युदय थशे माटे तमो तमारां स्तोत्रो तपगच्छना वर्तमान- विद्यमान आचार्य श्री सोमतिलकसूरिने समर्पित करो. "
-- (आ० जिनप्रभसूरिशिष्य आदिगुप्तरचित सिद्धांतस्तवावचूरि ) माणिभद्रवीरे आ० श्री विजयदानसूरिने स्वप्नमां कह्यं के" तमारा गच्छनुं कुशलपणुं करीश. तमारी पाटपर विजय शाखा स्थापजो.
--- (पं खुशालविजयकृत भाषा - पट्टावली, सं० १८८९ जे० व० १३ शुक्रवार, सिरोही ) वास्तविक रीते जोई शकाय छे के आ जैनशासनसंरक्षक अने हितवादी देवदेवीओनी भविष्यवाणी अत्यार सुधी निरपवाद साची पडी छे.
आपणे पण प्रस्तुत निबन्ध समाप्त करतां पुनः पुनः ए देवीवचनोनी निरन्तर सफळता इच्छी
विरमीए.
जैनं जयति शासनम्
वीर नि० संवत् २४६२, कार्तिक पुनम, डावला, अमदावाद.
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