Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah
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श्रमण वंशवृक्ष
विजयचन्द्रसूरि
ओ जगचन्द्रसूरिना शिष्य थाय, अने संसारावस्थामां वस्तुपालने त्यां हिसाबी मंत्री हता. परंतु दीक्षा लीधा पछी ज वस्तुपाले तेमने सूरिपद अपाववा महेनत करी हती. विजयचंद्रसूरि आचारमां शिथिल हता आयी अने देवेन्द्रसूरि तथा विजयचन्द्रसूरि खंभातमां नाना मोटा उपाश्रयमां रहेल होवाथी विजयचन्द्रसूरिनो परिवार वृद्धतपगच्छना नामे ओळखायो. आथो तेमना शिष्याए करेल साहित्यनी सेवाना उल्लेख अह नथी कर्यो. विजयचन्द्रसूरिए देवेन्द्रसूरिने सुदर्शना चरित्र लखवामां मदद करी हती तेम ज तेमनी श्रावकदिन कृत्यसवृत्ति सुधारी हती. तेमणे साहित्यनुं सर्जन करवाने बदले साहित्यने टकाव्युं छे. तेमना उपदेशथी केटलीक कथाओ, चूर्णि अने नियुक्तिओ ताडपत्र पर लखायेल छे.
५
विद्यानंदसूर
ते देवेन्द्रसूरिना शिष्य हता. साहित्यनी वधु सेवा करे ते पहेलां ज तेओ काळधर्म पाम्या छे छतां तेणे ए उमर मांय ' विधानन्द' नामनुं नवु व्याकरण रच्युं छे जेनी अन्दर ' सर्वोत्तमं स्वल्पसूत्र - बहर्थ संग्रह ' छे. तेमना गुरु देवेन्द्रसूरिए नव्य कर्मग्रंथ पर स्वोपज्ञ टीकाओ रची हतो जेमां हरिभद्र कृत नंदी सूत्र टीका, मलयगिरि कृत सप्ततिका टीका, शतक चूर्णि, अने धर्मरत्न टीकानो उल्लेख आ टीका विद्यानन्दसूरि अने तेमना लघुभाई धर्मघोषसूरिए संशोधेल छे.
छे.
धर्मघोषमूरि
विद्यानंद सूरिना अवसानथी देवेन्द्रसूरिनी पाटे धर्मघोषसूरि आल्या. विद्यानंदसूरिना ते संसारावस्थाना भाई थाय. तेमनुं मूळ नाम धर्मकीर्ति हतुं. अने दीक्षा लीधा पछी तेमणे ते नाम सार्थक करेल छे. भगवती सूत्रना वांचन वखते ज्यां ज्यां 'गोयमा' शब्द आवतो त्यां त्यां एक सोनामहोर मूकी छत्रीस हजार सोनामहोरथी आगमनी पूजा करनार पेथड मंत्रीना ते गुरु हता. आ रकमथी धर्मघोषसूरि घणां शास्त्रो लखाव्या हता, संशोधन करात्र्युं हतुं अने तेने भंडारमां एकत्रित कर्या हता. तेमणे वधु विहार करी जनताना हृदय सुधी प्रवेश कर्यो हतो. तेओ प्रबल मंत्र - शास्त्री हता. तेमणे संघाचारभाष्यवृत्ति, श्रुतधर्मस्तव, कायस्थिति-भवस्थितिस्तव, चतुर्विंशति जिनस्तव, चतुर्विंशतिः, प्रस्ताशर्मेत्यादि स्तोत्र, देवेन्द्रेरनिशं, वगेर लेश स्तोत्र, 'यूवं यूवां त्वमिति श्लेष स्तुति, जय वृषभेत्यादि स्तुति छे. आ सिवाय कालसप्तति - सावचूरि- कालस्वरुप विचार, तथा एकसो बेतालीस कारिकामां प्राकृतमां श्राद्ध जितकल्प, प्राकृतमां दुःषम काल संघ स्तोत्र वगेरे पुस्तको रच्यां छे.
9
जगचंद्रसूरि पछी तपगच्छमां धर्मघोषसूरिए जैन साहित्य, संस्कृति अने कळामां जे शिथिलता पेठी हुती तेने दूर करवा माटे यत्न करेल छे.
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