Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah

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Page 100
________________ श्रमण वंशवृक्ष ऋषि, महर्षि, माहण, मुनि, यति, तपस्वी, चातुर्यामिक, पंचयामिक अने क्षपणक' इत्यादि नामोथी पण लक्षित होय एवां अनेक प्रमाणो मळे छे. त्रण श्रमण संस्थाओ भगवान् महावीरना युगमां आपणने त्रण साधु-संस्थाओना इतिहास मळे छे. आजना त्रणे फिरकाना साधुओ ए त्रणे साधु संस्थामांथी उतरो आवेल छे, ते आ प्रमाणे: ३. भगवान् महावीर स्वामी पहेलांना जन श्रमणो चातुर्यामिक धर्मवाला मनाय छे. ते थो सर्वथा हिंसा-मृषा-स्तेय-बहि द्रादानना त्यागरूप चार यम-महावतो, पालन करता हता. भगवान महावीर स्वामीना शिष्य श्रमणो पांच यमवाला-महाव्रतवाळा छे जेओ सर्वथा हिंसा-मृषा-स्तेय-मैथुन-परिग्रह( मूर्छा)ना त्यागरूप पांच महाव्रतोने पाळे छे. चार महाव्रतवाला श्रमणो विविधरंगी वस्त्रोनो परिभोग करे छे, दश कल्पोमांथी चार कल्पोने सेवे छे. पांच महाव्रतवाला जन श्रमणो सफेद अल्पमूल्यवाला अने चारित्रने पोषण आपे एटलां ज वस्त्रो पहेरे छे, दशे कल्पोर्नु सेवन करे छे. A. भगवान् महावीर स्वामीना समये भगवान् पार्श्वनाथना चातुर्याम धर्मवाला केशीस्वामी वगेरे श्रमणो विद्यमान हता, जेनुं तत्थ्य वर्णन श्री उत्तराध्ययन सूत्र, अ. २३मा संवादित छे. B. गौतमबुद्धना समये चातुर्याम जैन श्रमणो विद्यमान हता एम बौद्र ग्रन्थो साक्षी पूरे छ -डो० हर्मन जेकोबीनी प्रस्तावना C. अथर्ववेद, अध्याय १५ मां वेदने नहीं माननारा “ महात्रात्यो" नुं वर्णन छे, आ महाव्रात्यो चातुर्याम धर्मवाला जैन श्रमणो छ, जेभी वेदबाह्य संप्रदायना जैन साधु मनाय छे. (अथर्ववेद संहिता, पृ. २९३) --दि० कामताप्रसाद-सम्पादित भगवान् पाश्वनाथ ४. क्षपणक, क्षपण, क्षमण, खवण ए दरेक तपस्वी जैन श्रमणोनां पर्यायवाचक नामो छ आवश्यक्तनियुक्ति, गाथा ७१९ नी हारिभद्रीय टीकामां क्षपणकनो अर्थ तपस्वी को छे. आ रीते कालगखवणा, सागरखवणा, सिंहगुहाखवण ( उत्तराध्ययनसूत्रनियुक्ति ), रक्खियखमणा (आवश्यकनियुक्ति, गाथा ७७६ ), मुंडपादक्षमग तथा घोषनन्दी क्षमण ( तत्त्वार्थभाष्यकारिका ) वगेरे श्वेताम्बर क्षपणको प्रसिद्ध छे. विक्रमनी सभाना रत्न क्षपणक श्री सिद्धसेन दिवाकर पण प्रसिद्ध श्वेताम्बर आचार्य छे. आटली वस्तु स्पष्ट होवा छतां विक्रमनी बीजी सदीना विद्वानोए क्षपणकनो अर्थ दिगम्बर-साधु को छे. ते तेओनी अर्थ विषयक या इतिहास सम्बन्धी अज्ञानता छे. आजना आग्रहचक्षु दिगम्बर विद्वानो आ मध्यकालीन प्रमाणोना आधारे नग्न साधुओने क्षपणक ठराववा मथे छे अर्वाचीन संस्कृतकोषकारो क्षपणकनो प्रयोग मागध तथा बन्दी वगेरे अर्थमां करे छे. शुं दि० विद्वानो तेओने पण दिगम्बर माने छे ? आ सिवाय प्रसिद्ध जनश्रुति छ के--" नमक्षपगके देशे रजकः किं करिष्यति ?" यदि क्षपणक शब्दनो अर्थ नग्न थतो होय तो आ श्लोकाधमां क्षपणकनी पहेलां नम शब्द शा माटे मुकवामां आवे ? सारांश ए छे के-क्षपणक ए तपःप्रधान जैन श्वेताम्बर साधुनु ज नामांतर छे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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