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श्री तपगच्छ
कुलमंडनमूरि विचारामृतसंग्रह, प्रवचन पाक्षिकादि पचीस अधिकारवाळा आलापक नामे सिद्धान्तालापकोद्धार, प्रज्ञापनासूत्र तथा प्रतिक्रमण सूत्र पर अवचूर्णि, प्राकृतमां काव्यस्थितिस्तोत्र पर अवचूरि, तथा नाना स्तवनो जेवां के विश्वश्रोधरेत्याद्याष्टादशारचक्रबंध स्तव, गरीयो०हार बन्ध स्तव वगेरे रचेल छे. वळी मुग्धावबोध औक्तिक पण रचेल छे जेना परथी तत्कालीन-मध्यकालनी गुजराती भाषा पर घणो प्रकाश पडे छे.
गुणरत्नमूरि ए प्रखर विद्वानश्रमण हता अने दर्शन तथा तर्कना प्रदेशमा स्वैरविहार करनार अमुक गण्यागांठ्या विद्वानोमा तेओनी गणत्री करी शकाय तेम छे. तेमणे कल्पान्तरवाच्य, सप्ततिका पर देवेन्द्रगणीनी टीकानो आघार राखी अवचूर्णि, देवेन्द्रसूरि कृत कर्मग्रन्थो पर अवचूरिओ, आतुरप्रत्याख्यान, चतुःशरण, संस्तारक अने भक्तपरिज्ञा ए चार पयन्ना-प्रकीर्णको पर अवचूरिओ, सोमतिलकसूरिना क्षेत्रसमास पर अवचूरि, नवतत्त्व पर अवचूरि, वासेांतिकादि प्रकरण-अंचलमत निराकरण, वगेरे ग्रन्थ रच्या छे. वळी ओघनियुक्तिनो तेमणे उद्धार करेल छे. परन्तु तेमनी वधारेमा वधारे साहित्यनी सेवा तेमना बे ग्रन्थ द्वारा ज छे. ते बे महान ग्रन्थो एक व्याकरण पर अने बीजो दर्शन पर छे. तेना नाम क्रियारत्न समुच्चय अने हरिभद्र कृत षड्दर्शन समुच्चय पर तर्क रहस्य दीपिका नामनी टीका छे. सिद्धहेम व्याकरणमाथी बहु उपयोगी धातुओ लई तेना दश गणना गणवार रूपो सन्देह न रहे तेवी रीते, तेमना गुरुना निर्देशथी क्रिया रत्न समुच्चयमा रचेल छे, अने षड्दर्शन समुच्चय परनी टीकामां बौद्ध तार्किको नामे सौदोदनि, धर्मोत्तराचार्य, धर्मकीर्ति, प्रज्ञाकर, दिङ्नाग आदि तथा पुष्कळ ब्राह्मण ग्रन्थकारो जेबा के अक्षपाद, वात्सायन, उद्योतकर, वाचस्पति, उदयन, श्रीकंट, अभय तिलकोपाध्याय, जयनी आदिनो उल्लेख करेल छे. अने ए बे ग्रन्थ द्वारा तेमणे दर्शन अने तर्कना क्षेत्रमा पातानुं नाम अमर करेल छे.
साधुरत्नसूरि यतिजितकल्प पर वृत्ति अने नवतत्व पर अवचूरि रचेल छे.
सोमसुंदरसूरि तेमना गुरुनु नाम जयानन्दसूरि अने तेओ देवसुन्दरसूरिनी पछी पाटे आव्या. सात वर्षनी वये मातपितानी संमतिपूर्वक दीक्षा लई सतत ने जब्बर अभ्यास करी धुरन्धर विद्वान थया. देवसुन्दरसूरि साथे ज पाटण अने खंभातना भंडारोना ग्रन्थोनुं ताडपत्र परथी कागळ पर संस्करण
४ आ प्रन्थ श्री हरिलाल हर्षदराय ध्रुवे प्रकट करावेल छे.
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