Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah

View full book text
Previous | Next

Page 93
________________ - श्री तपगच्छ भगवानना शिष्योए दश पयन्नानी रचना करी, गणधरोए दृष्टिवादनी रचना करी. पश्चात् स्थविर आचार्योए उपांगो वगेरेनी रचना करी. चोराशी आगम तथा पिस्तालोश आगमो तथा अन्य स्थविर आचार्यो वगेरे कृत जे शास्त्रो छे ते सर्वमा प्रभु महावीरदेवनुं ज्ञान भर्यु छे. हाल पिस्तालीश आगम विद्यमान छे. तथा हजारो धर्मग्रन्थ-शास्त्रो विद्यमान छे. प्रभु महावीरदेवे सत्य श्रुतज्ञान्नो प्रकाश करी चतुर्विध संघरूप तीर्थनी स्थापना करी. तेमणे छेवटनु थोडं आयुष्य बाकी जाणीने छेक्टे त्रण दिवस सुधी ( पावापुरीमा अढार देशना राजाओनो गण मल्यो हतो तेमनी आगळ) अखंड प्रवाहे उपदेश दीधो; तेमांना नव राजा लेच्छवी जातिना हता ने नव मल्लकी जातिना क्षत्रिय राजा हता. छेवटनी सभामां लाखो मनुष्यो भगवानना शरीरनी अन्तावस्था जाणीने भेगा थया हता. भगवाने पापर्नु अने पुण्यन स्वरूप जणाव्युं अने आत्मानी मुक्तिना उपायो जणाच्या. आसो वदि अमावास्यानी एक प्रहर रात्रि अवशेष रही त्यारे प्रभुए शरीरनो त्याग कयों अने ते सिद्ध स्थानमा सिद्ध बुद्ध परमात्मा तरीके सादि अनन्तमां भागे विराजमान थया. श्वेतांबर फोमनी अने दिगंबर कोम वगैरेनी वसति अत्यारे सर्व मळीने बार लाख पांत्रीस हजारना आशरे छे. श्री महावीरदेव अने अशोक, खारवेल, संप्रति राजाना समयमां जैनोनी संख्या वीश करोड लगभगनी हती. हिन्दुस्तान तथा अफगानीस्थान, अबस्थान, आसाम वगेर अन्य देशोमां पण जैनधर्म फेलावाथी जैनोनी संख्या वधी हती. अशोक पहेलो बौद्ध हतो पण पाछळथी ते जैन थ्यो हतो. चन्द्रगुप्त राजा जैन हतो. शंकराचार्यनी पूर्व ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, अने शूद्र ए चार वर्णोमां जैनधर्म प्रवर्ततो हतो तेथी विक्रम संवत् पांचमा, छट्ठा, सातमा सैका सुधी दश करोड लगभग जैनोनी संख्या हती, गुजरातनी गादी स्थापनार वनराज चावडो श्री शीलगुणसूरिनो शिष्य हतो. ते जैनधर्म मानतो हतो अने शैवधर्मने मान आपतो हतो. ते वखतमां ग्वालीयर तरफना देशमा आमराजा जैनधर्मी हतो. तेना वखतमां जैनोनी संख्या पांच-सात करोड सुधीनी हती. कुमारपाळ राजा जैनधर्मी राजा थयो, तेना गुरु श्री हेमचन्द्राचार्य हता. तेमना वखतमां जैनोनी संख्या पांच करोड आशरे हती. ते वखते पण थोडा घणा प्रमाणमां चारे वर्णों जैनधर्म पाळती हती. कुमारपाळ राजाए जैन ब्राह्मणोने भोजक तरीके व्यवस्थापित कर्या. कुपारपाळ पछी वस्तुपाळ अने तेजपाळ गुजरातना प्रधानो थया. तेमना वखतमां जैनोनी संख्या चार करोडनी हती. ते वखते पण श्वेताम्बर अने दिगम्बर जैनोनुं जोर पुष्कळ हतुं. जैनो क्षत्रिय धर्म प्रमाणे युद्धादिक प्रवृति करता. वस्तुपाल अने तेजपाळ पछीना काळमां तथा रामानुजाचार्य तथा वल्लभाचार्य पछी तेओना उपदेशथी अने बैष्णव राजाओना जोरथी जैनोनी संख्या घटवा लागी, अने जैन वणिकोने रामानुजे तथा वल्लभाचार्य वैष्णव बनाववा मांड्या. श्री हीरविजयसूरिना वखतमां श्री अकबर बादशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142