Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah

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Page 88
________________ श्रमण वंशवृक्ष १५ आनंदघन चोवीसीने नामे ते जाणीता छे. आवा सुंदर स्तवनो आपणा नजर समक्ष भाग्ये ज नजरे चडे छे. आ सिवाय तेमणे बीजा पदो लखेल छे ने तेनो संग्रह आनंदधन बहोतरीमां थयेल छे. आ सिवाय आ युगमां थयेल श्री विनयविजय उपाध्याय, पंडितश्री वीरविजयजी, अने सत्यविजय पंन्यासने याद करी लेवा जोईए. विजयानंदमूरि No man has so peculiarly identified himself with the interests of the Jain Community as Muni Atmaramji-मुनिश्री आत्मारामजीए पोतानो जातने जेटली जैन समाजने अर्पण करी छे तेटली बीजा कोईए नहि करी होय.' आ शब्दो विजयानंदसूरि माटे अमेरिकामां भरायेल सर्वधर्मपरिषदमां तेमनी छबी नीचे लखवामां आव्या हता. तेओ विजयसिंहसूरिनी पाटे एक आचार्य तरीके लगभग एक शतक पछी आव्या छे. यशोविजयजी महाराज पछी श्रुताभ्यास बंध पड्यो हतो ते विजयानंदसूरिए शरू कों ने तेओए बहुश्रुतपणानुं स्थान संभाळी जैन समाजपर दोढसो बर्षनो अंधकार फरी वन्यो हतो तेने उलेचवा एकले हाथे यत्न कर्या. ते वखते अत्यारना जेटली पुस्तकोनी छूट नहती तोय तेमणे जैनेतर दर्शनना अनेक पुस्तको वांची काढ्या हता. तेमनी स्मरणशक्ति पण अजब हती. वादविवादमा तेओ कुशळ हता. तेमनामां बुद्धिनुं तेज हतुं, तत्वपरीक्षक बुद्धि हती, विशाळ वांचन हतुं एटले तेमणे शक्य साधनो, शिलालेखो, ताम्रपत्रो, भूगोळ भूस्तर-द्वारा जैनोनी प्राचीनतानी महत्ता स्थापवाने यत्न करेल छे. तेमना रचेला ग्रंथोमां-जैन तत्त्वादर्श, अज्ञानतिमिरभास्कर, सत्तरभेदी पूजा, वीसस्थानकपूजा, एक स्थानकवासी साधुना सम्यक्पसारमा करेला आक्षेपोना प्रतिकार रुपे सम्यक्त्व शल्योद्धार नामर्नु खंडनात्मक पुस्तक, जैनमतवृक्ष नामे औतिहासिक ग्रंथ, अष्टप्रकारी पूजा, नवपदपूजा, चतुर्थस्तुति निर्णय, तत्त्वनिर्णयप्रासाद, चिकागो प्रश्नोत्तर वगेर मुख्य छे. विजयधर्मसूरि वृद्धिचंद्रजी महाराजनी पाटपर श्री विजयधर्मसूरि थया. तेमणे परदेशनी अंदर जैन साहित्यना विद्वानो पेदा करवा माटे भारेमा भारे श्रम उठाव्यो छे. तेओ जातमहेनते शास्त्रविशारद थया हता. तेमणे 'जैन शासन' नामर्नु एक पाक्षिक पत्र शरू करेलुं. ने तेमां लखेला तेमना निबंधो ‘धर्मदेशना'मां संग्रहाया छे. धर्माभ्युदय नामर्नु मासिक पण तेमणे काढेलं. हेमचंद्राचार्यनुं योगशास्त्र तेमणे संपादन करेलुं छे. जैन तत्त्वदिग्दर्शन, अहिंसादिग्दर्शन, जैनशिक्षादिग्दर्शन, पुरुषार्थदिग्दर्शन, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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