Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah

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Page 73
________________ श्री तपगच्छ आ पछी तेओश्री माळवामां गया. अर्ही माणेकचंद्र नामनो श्रावक तेमनो परमभक्त बन्यो. एक वेळा शत्रुंजय महात्म्य सांभळी ते यात्रा करवा चाल्यो अने दर्शन कर्या वगर अन्नपाणी न लेवानी प्रतिज्ञा करी. सातमे दहाडे सिद्धपुर पासे मगरवाडामां भिल्ल लोकोए हुमलो कर्यो अने आमां तेओ शत्रुंजयना ध्यानमां मृत्यु पाम्या. अहींथी मणिभद्रवीरनी उत्पत्ति थई. आ शासनरक्षक वीर तेमणे दरेक मंदिर अने उपाश्रयमां स्थापन कर्या. अने तपगच्छ शासनना रक्षक बनाया. सूरिजीए माळवा, मेवाड, मरुधर, गुर्जर, खंभात, सोरठ, कन्हम, दमण, मेदपाट वगैरे देशमा विहार करी सद्धर्मनी प्ररूपणा करी, अनेक कुतीर्थीओने हरात्र्या अने ६४ कुमती ओनो पराजय करी ६४ जिनप्रासादो उघडाव्यां तेमज वि. सं. १५८७ मां शत्रुंजय गिरि पर पधारतां, तेनी जीर्ण अवस्था निहाळा ते वखते यात्रा करवा आवेल चितोडगढना रहेवासी ओसवाल कुलना वारुणा कुटुम्बना दोशी कर्माशाने उपदेश आप्यो, ने तेमनी पासे छेल्लो उद्धार करायो. ओश्रीए जीवनमां खूब उम्र तपश्रर्या कर्या करी हती. तेओनी आज्ञा नीचे १८०० साधुओ विचरता हता, अने तेओए ५०० साधुओने दीक्षित कर्या हता. आ पछी विहार करता श्री अमदावाद' आया. तेमने लाग्युं के मारो अन्तिम समय नजीक छे, एटले अनशन धारण क. आ प्रमाणे नवमे उपवासे अमदावादमां आवेल निजामपुरामां वि. सं. १५९६ ना चैत्र सुदी ७ ना प्रभात समये तेओ स्वर्गधाम सीधाव्या. २४ तेमनो नश्वर देह चाल्यो गयो, पण तेमनी अक्षय कीर्ति दशे दिशाने अजवाळी रही छे. आजे ए प्रकाशमां अनेक भवीओ पोतानुं कल्याण साधी रह्या छे. चिरंजीव ए यशोमूर्तिने प्रत्येक युगनी वंदना हजो श्री झवेरसागरजी उक्त महाराजश्रीनो फोटो आपेल छे, जेनो नं. २४ छे. ते ओश्रीनो जीवन परिचय मेळवावा माटे घणी महेनत करी पण नहीं मळवाथी ते आपी शकायो नथी, ते माटे वाचक दरगुजर करशे. --संपादक Jain Education International फ्र For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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