Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah

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Page 59
________________ १० श्री तपगच्छ सं. १९४५ना महेसाणाना चतुर्मासमां तेमणे घणां सुंदर कार्यो कयां. अत्र 'जैनप्रश्नोत्तर' नामक सुंदर ग्रंथनी रचना करी. तेमज युरोपीयन विद्वान डॉ. होर्नल साथे पत्रव्यवहार शरु को. अहीथी जोधपुरमा एक चतुर्मास करी तेओ पुन: पंजाब पधार्या. हवे तेमणे पंजाबमां जिनमदिरो स्थापन करवानु कार्य जोसभेर उपाडयु. प्रथम प्रतिष्ठा मालेरकोटडामां थई. बीजी अमृतसरमां थई. आ वेळा तेमणे केटलाय खर्चाळ रिवाजो ओछा कराव्या. धीमे धीमे तेमनी कीर्ति बधे प्रसरतो जती हतो. आ वखते चिकागो शहेरमां भराती 'विश्वधर्म परिषद ' मां तेमने पधारवान निमंत्रण मळ्यु. साधुआना कडक आचार-विचार मुजब तेमनुं जq अशक्य होवाथी जैन ग्रेज्युएट श्रीयुत् वीरचंद राधवजीने त्यां मोकलवा माटे तैयार कर्या अने पोतानी पासे राखी जैनतत्वोनो पूरो अभ्यास करावराव्यो, तेसज 'चिकागोप्रश्नोत्तर' नामक पुस्तक तैयार कयु. श्री वीरचंद राघवजी गांधीए परिषदमां जई सूरिजीनी भावनाने सफळ करी. पूरिजी अमृतसरथी जीरा पधार्या. अहीं केटलीय प्रतिमाओने अंजनशलाका करी. अहींथी तेओ हाशियारपुर गया अने सुवर्ण जिनमंदिरना स्थापना करी. घगी प्रतिष्ठाओमां सौथी छेल्ली प्रतिष्ठा तेमणे सनखतरानी करी. सूरिजीना जीवनमा डगले ने पगले भनभीरता जोवाती. पोतानी कोई भूल थाय तो तरत खमानी लेता. क्रोषनी पळ आवे त्यारे शान्ति धारण करता. जेयो तेमनो सशक्त देह हतो, आत्मा पण तेवो सशक्त हतो. वादशक्ति प्रचंड हती अने युक्ति अने दलीलोना तो तेओ भंडार हता. आर्यसमाज स्थापक स्वामी दयानन्द साथे पण तेमणे शास्त्रार्थ करवानुं नक्की कयु हतुं पण स्वामी दयानन्दनुं मृत्यु थतां शास्त्रार्थ न बनी शक्यो. तेओ अप्रतिबद्ध बिहारी हता एकी साथे बे चतुर्मास क्यांय न करता, तेमज विहारमा पोतोना वाचन-मनन साथे शिष्योने पण भणावता. पाश्चात्य विद्वानो पर तेमनी अजब छाप पडी हती. डॉ. ए. एफ. रुडोल्फ होनले सम्पादित करेल — उपासक दशांग 'नी प्रस्तावनामां सूरिजी माटे जे शब्दो लख्यो छे, ए ते वातनी पूरी प्रतीति करावे छे. तेमनी साहित्य सेवा पण खूब विशाळ छे. जैनसमाजमां बहुश्रुततानी गंगा बहेवडाववानुं प्रथम मान तेमने ज घटे छे. तेमणे तत्वनिर्णयप्रासाद, जैनतत्त्वादर्श, अज्ञानतिमिरभास्कर, चिकागो प्रश्नोत्तर, सम्यक्त्वशयोद्वार, जैन प्रश्नोत्तर, नवतत्त्व संग्रह, आत्मविलास, आत्मबाबनी, जैनगतवृक्ष, चतुर्थस्तुति आदि ग्रन्थोनी रचना करी छे. मूरिजीन संपूर्ण जीवन क्रान्तिकार ने धर्म-प्रेमथी भरपूर छे. आ ने आ लगनीगां सनखतगनी प्रतिष्ठा पछी तेमनी तबियत लथडी. तेमां पण एक बखत पाणी न मळतां छाशथी चलाब, पडयु. आ कुपश्य थयु ने रोग वधी गयो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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