Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah

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Page 54
________________ श्रमण वंशवृक्ष रोज तेओ भायखला आव्या अने त्यांथी लालबाग पधार्या. अहीं साधुओने उतरवावें स्थान नहातुं. उपदेश आपी तेमणे तेनी व्यवस्था करावी. आ चतुर्मास अत्रे ज कर्यु. आ पछी तेओ सुरत पधार्या. तेओ आ बधा क्षेत्रोमां धर्मबीज वावता गया, ने ज्यां जैनधर्मनो पूरो प्रचार नहोतो त्यां जैनधर्मने जाणीतो को. तेओए समस्त जीवन धर्मप्रभावना माटे वीताव्युं, पण तेमां मुंबई अने सुरत माटे जे अथाग श्रम सेव्यो ते चिरस्मरणीय छे. __आवा एक महान मुनिवर ७६ वर्षनी उंमरे सुरत मुकामे सं. १९६३ना चैत्र वदी १२ना रोज कालधर्म पाम्या. पं. श्री हर्षमुनिजी (जुओ चीत्र नं. ८) केटलाकोनुं जीवन सागरसम गंभीर होय छे. केटलाको नायगराना धोध जेवं क्रांतिकार जीवन जीवी जाय छे. ज्यारे केटलाकोना जीवनने सरितानी शांतिनी उपमा आपी शकाय छे. पंन्यास श्री हर्षमुनिजीना जीवनने आवा शान्त सरितानी उपमा आपी शकाय! ___मुनिजीनो जन्म प्रसिद्ध कच्छदेशमा मांडवी शहेरमा ओसवाल ज्ञातिमा सं. १९२४ना फागण मासमां थयो हतो. तेमना पितानुं नाम वीरपालभाई अने मातानुं नाम लक्ष्मीबाई हतुं. मुख-कान्ति अने देहनी शोभाने लीधे मातापिताए तेमनुं नाम हीराचन्द राख्यु. लाडकोडमां उछरता हीराचन्द पांच वर्षनी उमरे निशाळे गया. व्यावहारिक ने नामामाना ज्ञान उपरांत धार्मिक ज्ञान तेमणे लीधु. पण आमां धर्मश्रद्वाए तेमना पर अजब असर करी. संसारथी तेओ उदासीन बन्या. एवामां बरकाणा तीर्थमा यात्रा करता प्रसिद्ध मुनिपुंगव मोहनलालजी महाराजनो समागम थयो. परिणामे सं. १९४४ना चैत्र सुदी ८ ने दिवसे खराडीमां तेओए दीक्षा लीधी. दीक्षा लीधी त्यारथी हर्षमुनिजी गुरु-सेवामां तल्लीन बनी गया. एने ज आत्मसाधना- परम साधन मान्यु. आ कारणे तेमने ज्ञान--प्राप्ति अने व्याख्यान-शक्ति पण सरस सांपडी. तेमनं व्याख्यान सूत्रानुसार ने मितभाषी होवाथी सुरत अने मुंबईना श्रावको ते माटे वधु उत्साही रहेता. सं. १९५७ना मागसर वदी २ ना दिवसे सुरतमां तेमने शुभ मुहूर्ते गणी पद आप्यु ने अषाड सुद ६ ने दिवसे मुंबईमां पंन्यास पद आप्यु, हर्षमुनिजी तो हजी पण गुरुभक्तिमा तल्लीन रहेता. एटलामां सं. १९६३मा गुरुदेवनो स्वर्गवास थतां आखा संघाडानो भार मुनिजीने हस्तक आव्यो, सुरतना संघे तेमने ते ज पाटे बेसाडी चतुर्मास त्यां ज कराव्यु. ____ आ पछी पं. श्री हर्षमुनिजीए धर्मसाधनामां पोतानुं वधु चित्त परोव्यु. पंचतीर्थी, समेतशिखर, वगेरेना संघो कढाव्या, तेमज पोणा लाख रुपियानुं फंड एकटुं करावी मुंबईमां गुरुस्मारक तरीके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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