Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah
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श्रमण वंशवृक्ष
भाग्योदय थवाथी, ते लक्ष्मीरूपमा पलटाई गयुं हतुं. तेओ ज्ञातिए वीशाश्रीमाळो अने धंधे वेपारी हता. मातापिता धर्मना पूरा प्रेमी हता. एवा मातापिताने त्यां बाळक केशवजीनो जन्म थयो.
केशवजीनुं मोसाळ पालीताणा हतुं. तेणे त्रण चोपडी सुधी अहीं अभ्यास कर्यो. सं. १९४०मां बधुं कुटुंब वढवाणकेम्पमा रहेवा आव्यु ने अहीं केशवजीनो छ चापडी सुधीनो अभ्यास थयो. पण तेटलामां काळनुं चक्र आयुं अने मातापितानो त्रण त्रण दिवसना आंतरे स्वर्गवास थयो. केशवजीन हृदय संसारथी धवायु ने वैराग्य भावना प्रबळ बनी.
आ वखते तेमने वडोदरा खाते श्री विजयकमलसूरीश्वरजीनो मेळाप थयो अने सं. १९५०ना मागशर सुद १० ना दिवसे तेमनी पासे ज दीक्षा लीधी. गुरुजीए तेमनुं नाम श्री केशरविजय राख्यु. श्री केशरविजयजीए एक समर्थ गुरुनुं शरण स्वीकार्यु हतुं. तेमनी पासे वडोदरा अने सुरतमा रहीने तेमणे खूब अभ्यास कर्यो. ज्ञान विशाळ थतुं गयु. तेवामां तेमनुं मन योग तरफ दोरायु, अने जीवनभर योगप्राप्ति माटे गमे तेवां संकटो सहेवामां तेमणे मजा मागी छे. अनेक चमत्कारो तेमने ते द्वारा प्राप्त थयेला कहेवाय छे. ॐकारनो जाप तो पोते करोडोबार करेलो ने जे मळे तेने ते करवा उपदेश आपेलो.
सं. १९६३मा सुरतमा तेमने गणीपदवी अपाई अने सं. १९७४गां मुंबईमां पंन्यासपदवीनो उत्सव थयो. आ पछी अचानक गुरुदेवनो स्वर्गवास थतां, तेमज स्वर्गस्थ गुरुदेवनी इच्छा मुजब पाछळनो बधो भार तेगने सेांपाता कार्यभार वध्यो. राजयोग जाणवानी इच्छा अहीं ज दबाई गई. पोताना समुदायतुं बंधारण करवा तेमणे वढवागकेम्पमा साधुसंमेलन भयु. आ पछी घणी दीक्षाओ तेमना हस्ते थई. तेमनी विद्वत्ता अने योगीपणानी ख्याति बधे प्रसरी वळी हती. धरमपुर स्टेट तथा बीजा राजाओ तेमना भक्तो बन्या हता. पारसी, मुसलमान, घांची, मोची तो तेमने पोताना ज हितैषी गणता.
तेमना गुणोथी आकर्षाई तथा स्वर्गस्थ सूरिजीनी इच्छाने मान आपी सं. १९८३ना कारतक वदी ६ ना रोज तेमने आचार्य पदवो अपाई. आ प्रसंगे खूब महोत्सव, मानपत्रो तेमज लखाणो थयां हता. आ वखते पण तेमनी साहित्यलेखन-प्रवृत्ति चालू हती ने तेमना ग्रन्थो जैनजैनेतर समाजमां सारो आदर पा-या हता. तेमणे लगभग २० उपरांत पुस्तको नीति, धर्म, कथानक ने योगने अंगे लख्यां छे.
वि. सं. १९८५ नुं वडाली- चतुर्मास पूर्ण करी तेओ तारंगाजी गया. अहीं गुफामां ध्यान अवस्थामां बेसतां शरदीए भयंकर हुमलो कर्यो, हृदयमां दर्द पेदा थयु ने आ दर्दे छेवटे प्राण लीधो. उपचार करवा अमदावाद उजमफईनी धर्मशाळामां लावतां केन्सरे देखा दीधो ने श्रावण वदी पांचमे
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