Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah

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Page 51
________________ श्री तपगच्छ महाराजनुं अवसान थतां समुदायनी सगवड साचववा योगोद्रहन करी तेओ सं. १९४७ना जेठ सुदी १३ ने दिवसे पंन्यास बन्या. पण तेमनी क्रियाशीलता ने विद्वत्ताथी जैनसंघ मुग्ध थयो हतो. तेओने अमदावादमां १० थी १२ हजारनी मानवमेदनी बच्चे सं. १९७३ ना महा सुद् ६ ने रविवारना रोज आचार्य पदवी आपवामां आवी. २ आ पछी ठेर ठेर विहार करता तेओ उपदेश आपना लाग्या. केटलाक ठेकाणेथी कुसंप दूर कराव्या. तेओ विद्याव्यासंग अने क्रियानी अभिरुचिवाळा हता. समाजनी शान्ति माटे तेमने पूरी लागणी हती. तेओश्रीए पांच चतुर्मास अमदावादमां, ६ पालीताणामां, ५ सुरतमां, ३ वडोदरामां, २ पाटणम, २ कपडवंजमां, तेमज धोराजी, महेसाणा, चाणस्मा, ऊंचा, लीमडी, वढवाणकेम्प, पादरा, मुंबई, पुना, एवला, बुरानपुरे, डभोई, बीजापुर, खेडा वगेरे शहेरोमा एक एक चतुर्मास कर्यु हतुं. वडोदरामां भरायेल मुनिसंमेलनना प्रमुखपदे बीराजी साधुसमाजनी अपूर्व शुद्धि जळवाय तेवा ठरावो कर्या हता. सं. १९७४ना वैशाख सुद १०ना तेओए स्वहस्ते सुरतमां पं. आनंदसागरजीने आचार्यपद आप्युं. अहींथी तेओश्री विहार करता बारडोली पधार्या. पण आसो सुद ४ ना इन्फ्ल्युएन्झा नामना तावे तेमना देह पर कबजो जमान्यो, अने आसो सुद १० ना रोज प्रतिकमण करतां कायोत्सर्ग करतां ओ स्वर्गे सीधाव्या. सूरिजीने पोताना भावीनो ख्याल प्रथमथी ज आवेलो होवाथी तेओ पोतानी नांधमां बधी सूचना करता गया हता. एवा दीर्घदर्शी महात्माओनां नाम आजे पण समाजमा अनेक रीते झळहळी रह्यां छे. श्रीमद् विजयकेशरसूरीश्वरजा (जुओ चित्र नं. ६ ) जैन समाजना श्रमणोद्यानमा अनेक, परम सौरभ भय फूलडां खोल्यां छे, अने ए फुलोना विश्व सुरभित बन्युं छे. आवां अनेक फूलडाओमानुं अनेरी फोरम फोरतुं एक पुष्प ते श्रीमद विजयकेशरसूरिजी ! ॐकारजापना पूरेपूरा रसिया, योगविद्याना अभ्यासी, तेमज गई कालना अने आजना युगने मार्गदर्शक थई पडे तेवी साहित्य श्रेणीना सर्जक ए सूरिजी गई काले जीवन्त हना, आजे अक्षर देहे जाग्रत छे ने आवती काले तेओ चिरंजीव छे. आवा चिरंजीव साधुपुरुषनो जन्म सं. १९३३ना पोष सुदी १५ ना दिवसे तीर्थाधिराजनी छत्रछायामां पालीताणा खाते थयो हतो. तेओनुं वतन काठियावाडमां बोटाद पासेनुं पाळीयाद गाम हतुं. तेमना पितानुं नाम माववजीभाई नागजीभाई हतुं ने मातानुं नाम पान हतुं, जेमनां पगलाथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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