Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 5
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 19
________________ १८) (सुखी होने का उपाय भाग - ५ सरागता दोनों प्रकार के भाव एकसाथ वर्तते हैं, तथा उनका ज्ञान भी आत्मा को हर समय वर्तता है। अत: उनमें से वीतराग भाव ही मोक्षमार्ग है और साथ में रहते हुए भी सरागीभाव यथार्थ मोक्षमार्ग नहीं है। इस विषय की चर्चा भी भाग-३ में की गई है। इसप्रकार उपरोक्त विवेचन के माध्यम से आत्मार्थी यथार्थ निर्णय पर पहुँच जाता है कि मैं तो ज्ञानस्वभावी हूँ - ज्ञान में जो भी ज्ञेय ज्ञात होते हैं, उनके संबंध में यथार्थ समझ के द्वारा परपने की मान्यता सहित उपेक्षा बुद्धि उत्पन्न करके, एकमात्र त्रिकाली ज्ञायकभाव में अपने उपयोग को एकमेक कर लेने का पुरुषार्थ ही यथार्थ मार्ग है, वीतरागी मार्ग है अर्थात् निश्चय मोक्षमार्ग है। लेकिन जबतक उपयोग पूर्णरूप से स्व में लीन नहीं हो जावे, तब तक यथोचित भूमिका के अनुसार शुभभाव भी रहते तो हैं लेकिन वे रागभाव होने से यथार्थ मोक्षमार्ग तो हो नहीं सकते, फिर भी उनको सहचारी देखकर व्यवहार से मोक्षमार्ग कहा गया है। इस प्रकार निश्चय-व्यवहार कथन से नयों का तथा परिणति का स्वरूप क्या है व आत्मार्थी को उनको मोक्षमार्ग के लिए समझना अनिवार्य किसप्रकार है, इस विषय की चर्चा भी भाग-३ में की गई है। इसप्रकार उपरोक्त विषयों को समझकर, आत्मार्थी उनके द्वारा यथार्थ निश्चय मोक्षमार्ग एवं अयथार्थ ऐसे व्यवहार मोक्षमार्ग के स्वरूप का निर्णय करके फिर अपने अंतर में उसका प्रयोग करने के लिये उद्यत होता है। भाग-४ का विषय उपरोक्त समस्या का समाधान भाग-४ में किया जाता है। वास्तव में आत्मार्थी को इस पुस्तक के ३ भागों के अध्ययन द्वारा मोक्षमार्ग का स्वरूप तो स्पष्ट हो ही गया है तथा साथ ही रुचि का वेग भी सब तरफ से हटकर, मात्र एक आत्मानुभूति प्राप्त करने के लिये, अंदर में उछालें मार रहा होता है। ऐसे आत्मार्थी की अन्तर्दशा ऐसी हो जाती है कि “काम Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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