Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha Author(s): Bramharshi Muni Publisher: Ravji Desar View full book textPage 6
________________ योग्यजीव जाणीने शुद्ध धर्मोपदेशनो लान थाप्यो. एथी ते वचनामृत पान करतां मनमां वैराग्य नावने जन्म मल्यो, एटझुंज नहीं पण ते वैराग्ये सत्य बैराग्य. नी दीक्षा लेवानी तेमने फरज पाडी के तेमणे पण धारका जवानुं चार बंध करी जन्मोकार करवानुं हार खोलवा मन दीधुं. घायु हतुं शुं भने थयुं शुं, "वाह! जवितव्या! तारी प्रबलता!”. एटले के धार्यो हतो हारका दर्शननो खान थने शुद्ध चारित्रनो खान थयो. गुरुश्रीए नाम राख्युं ब्रह्ममुनिकेमके ते नविष्यमा परब्रह्मज्ञानना वा परब्रह्म ( वीतराग) नाषित ज्ञानना झाता चनारा होवाथी प्रथमथीज ज्ञानदृष्टिवळे ते नामनुज पद समप्यु. तदनंतर गुरुराजे पोताना बकेला नामने सार्थक करवा माटे मुनि धर्म योग्य क्रिया-अनुष्ठानना सूत्र (सिद्धांत-तस्त्र) नो अच्यास कराव्यो, अने से पढ़ी तेमणे (पोते) अन्य महान् आचार्य पासेथी पोतानी प्रबल बुद्धिना योगथी घणाज तत्वज्ञाननो संग्रह कर्यो भने समर्थ शास्त्र विशारद बिरुदवंत थया. एथी श्री वृहत्तपागचाचार्य श्री विजयदेवसूरिजी तेमने सूरिमंत्र श्री ब्रह्माचार्य नामथी नारत जूषण तरीके विख्यातिमार्गमा स्थिर कर्या. श्री विजयदेवसूरिना शिष्य श्री विनयदेव सूर ते था ग्रन्थकारना संतारिक संबंधमां जा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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