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(७) नयोजी दिन आज ॥आजरे में मुख देख्योगोमीपारस को । मेरो० ॥ टेक ॥ अन्यदेवनकू बहूत में धायो, तो ए न सस्योजी मेरो काज ॥जरे॥१॥नव ज व जटकत शरणे हुं श्रायो, अब तो रखो मोरी ला ज ॥आज रे० ॥२॥ कम हरावन नागकू तारन, संजलाव्यो नवकार ॥ आज रे० ॥३॥ रूपचंद क हे नाथ निरंजन, तारण तरण जहाज॥जलाजी तुम तारण तरण महाराज ॥ श्राज रे ॥४॥ इति ॥
किरपा करो रे गोमी पास जिनेसर, तुम स्वामि अं तरजामी ॥ टेक ॥ जंचे उंचे गढपर पासजी बिराजे, चारे तरफ ज्ञानी ध्यानी ॥ किरपा ॥ १ ॥ नील वरण तोरो अंग बिराजे, बदनोंकी जाउं बलिहारी ॥ किरण ॥२॥ बांहे बाजुबंध बहेरखा बीराजे, कुं मलकी बबि हे न्यारी॥किरण॥३॥ ढूंढत ढूंढत में प्र नु पायो, पूरण पदवी अब पाइ॥ किराधानाथ नि रंजन नाम तुमारूं, रूपचंद पदवी पाश्॥किरण ॥५॥ ___ ३ मुजरा साहेब मुजरा साहेब,साहेब मुजरा मेरा रे ॥ टेक ॥ साहेब सुविधि जिनेसर प्यारा, चरण पखालुं प्रजु तेरा रे ॥मुजरा०॥१॥ केशर चंदन चरचूं अंगे, फूल चढावं सेरा रे ॥मुजरा ॥२॥
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