Book Title: Stavanavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 147
________________ ( १३६) डे रे नाचतो, तो नटवी करूं मुज हाथ ॥ कर्मः॥ ए ॥ कर्म वशे रे हुं नट थयो, नाचुं बु निरधार ॥ मन नवि माने रे रायगें, तो कोण करवो विचार । कर्म ॥१७॥ दान न आपे रे नूपति, नटे जाणी ते वात, हुं धन वंडं रायन, राय वंडे मुंज घा त ॥ कर्मणः ॥ ११॥ दान ललं जो हुं रायन, तो मु ज जीवित सार ॥ एम मन मांहे रे चिंतवी, चढि यो चोथी रे वार ॥ कर्म ॥ १२ ॥ थाल नरी शुरू मोदके, पदमणी उनी ने बार ॥ ल्यो व्यो कहे डे लेता नथी, धन धन मुनि अवतार ॥ कर्म ॥१३॥ एम तिहां मनिवर वहोरता, नटे देख्या महा जा ग ॥ विधिक विषयारे जीवने, एम नट पाम्यो वैराग॥ कर्म ॥ १४॥ संवर नावे रे केवली, थयो ते कर्म खपाय ॥ केवल महिमा रे सुर करे, लब्धि विजय गुण गाय ॥ कर्मः ॥ १५ ॥ इति ॥ ॥अथ श्री रात्रिनोजननी सद्याय ॥ ॥ पुण्य संयोगे नरजव लाध्यो, साधो श्रातम का ज ॥ विषया रस जाणो विष सरीखो, एम लांखे जिनराज रे ॥ प्राणी रात्रि जोजन वारो ॥ श्रागम वाणी साची जाणी, समकित गुण सहिनाणी रे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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