________________
(१३५) ॥अथ श्री एलाची कुमरनी सद्याय ॥ ॥ नाम एला पुत्र जाणीये, धनदत्त शेग्नो पु त्र॥ नटवी देखीने मोहीयो, नवि राख्युं घर सूत्र॥ कर्म न बूटे रे प्राणीया ॥१॥ ए आंकणी॥पूरव नेह विकार ॥ निज कुल बंमी रे नट थयो, नाणी शरम लगार ॥ कर्मः ॥२॥ मात पीता कहे पुत्र ने, नट नवि थए रे जात ॥ पुत्र परणावं रे पदम णी, सुख विलसो ते संघात ॥ कर्म ॥३॥ कहण न मान्युं रे तातनु, पूरव कर्म विशेष ॥ नट थश्शी ख्यो रे नाचवा, न मिटे लखिया रे लेख ॥ कर्म॥ ॥४॥ एक पुर आव्यो रे नाचवा, जंचो वंस विशे क ॥ तिहां राय जोवाने श्रावियो, मलिया लोक श्र नेक ॥ कर्म ॥५॥ ढोल वजावे रे नटवी, गावे किन्नर साद ॥ पाय तल घुघरा घम घमे, गाजे अंब रनाद ॥ कर्म ॥६॥ दोय पग पहेरी रे पावमी, वंस चड्यो गज गेल ॥ नोधारो थ नाचतो, खेले नव नवा खेल ॥ कर्मः ॥ ७॥ नटवी रंजारे सारिखी, नयणे देखे रे जाम ॥ जो अंतेउरमां ए रहे, जनम सफल मुज ताम ॥ कर्म ॥॥ तव तिहां चिंते रे नूपति, बुब्धो नटवीनी साथ ॥ जो नट प
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org