Book Title: Stavanavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 144
________________ (१३३) ॥ सोरग ॥ सूतां जोए सास, मूआं वोलावी वरे; स्त्रीश्रतणो वीसास, कालांतर कीने नहिं. ११३ ॥दोहा॥ गोरि ताहरां नयणलां, बहिरे जातां वारिः । कर कंटाली वाड करि, कर घर बेगं चारि. ११४ जेती नारी रूअडी, ते नर विरुआ लक; जे नर रूपे रूयमा, तेह कुनारे बक. ११५ रन्ने सुजन मिलाव, रन्ने हुश्रा जुहार; आदर करी न तेडिया, घर ले घरिणि कुहाड. ११६ ॥ चोपाई॥ सूती उठी गालि दियंती, हीडे परघर घात करती; हबकुसुधी हांडी फोडे,आप पसंसि जगत्रि निहोडे.१७ दिण दिण दिसे नयण नरंती, मंड धरिज कूपपडती दणक्षण निहुँरह नासंती, ससत्तावे घर न वसंती११० आयसिलके परही चसी, नियघर रूसण बाहिर बुसी बोलनापेअलिथ जपे, सास्त्री देखी चंडविकंपे.११॥ उढणडी अतिवारुकीजे, किये करावे कह विन लीजै; घरअणुसारेजोजनदीजें, तहविकुंजजाउहणुखीजे२० ॥ दोहा॥ चंचल चपल चलंफला,घण आहार सरोस; तुरियह पंच हुये घणां, ते स्त्री पंचे दोस. ११ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162